सुरेश कांटक जी कऽ दू गो गीत

देखनी

लोकतंत्र में राजा देखनी
बोले ओकर जनाजा देखनी।

मारे खूब रोवै ना देवै
ओकरे बाजत बाजा देखनी

भवह बोले ना भसुर छोड़े
खुलि के मारत माजा देखनी

देलें भासन अउर ना कुछो
बाकिर जोर तकाजा देखनी


कांटक का नीमन का बाउर
कहे कि सभ ह ताजा देखनी
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राजा जी

सुखल जाता धरती के पानी ए राजा जी
क इसे चली आगे जिनगानी ए राजा जी
 
घर वा दुआर छोड़ि के जाल परदेसवा
क इसे बाँची टुटही पलानी ए राजा जी

अन्हिया बहल उड़ियात बा टे गँउवा
जिनगी भ इल कोल्हू घानी ए राजा जी।

केकरा दो घर वा में सोनवा सुखात बा
केहू के कटेला खूबे चानी ए राजा जी।

हवा में बनावेल तू कहँवा क इसन किलावा
चुनरी धूमिल इहँवा धानी ए राजा जी।

लूगावा लटाला हमर रोजे सरेआम हो
कहेल तू नानी के कहानी ए राजा जी।

कांटक एह धरती के बाँची पानी क इसे
रानी मस्तानी मधुरी बानी ए राजा जी।

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लेखक परिचयः-

नाम: सुरेश कांटक
ग्राम-पोस्ट: कांट
भाया: ब्रह्मपुर
जिला: बक्सर
बिहार - ८०२११२
अंक - 84 (14 जून 2016)

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