मन बृंदावन - बच्चन पाठक 'सलिल'

जब हमार लागेला ध्यान, लउकेले श्रीकृष्ण भगवान।

मुरली बजावत आनन्द वरिसावेले, एह युग में शान्ति-गीत गावेले।
तब लागेला, हमार ई मन, साँचो के भइल बा वृन्दावन।

जब हम रहीला जागल, शान्ति रहेले भागल।
तब चेतना समुझावेले, हमरा के बतावेले, आधा मन बृन्दावन धाम,
आधा लिखाइल बा, कालिया नाग के नाम।

ओहिजा बा ईर्ष्या आ द्वेष, कइसे रही शान्ति के लवलेस।
चाहतारऽ कि आनन्द पावऽ त आधा ना, पूरा मन के वृन्दावन बनावऽ।
-----------------------------------

लेखक परिचय:-

नाम: डा. बच्चन पाठक 'सलिल'
जनम: 17 सितंबर 1937
मरन: 10-04-2016
जनम थान: रहथुआ, भोजपुर, बिहार
रचना: मन के गीत सुनाईल, सेमर के फूल
अंक - 85 (21 जून 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.