
(क्लास में सब लड़िका जुटल बारन स, मंगरुआ के मोबाइल पर गाना बाज रहल बा “जा हो चंदा ले आवs खबरिया ” लड़का सब एकदम ख़ुशी से नाच रहल बारें. लाबेदवा के चचेरा भईया के चचेरी साली बोर्ड में टॉप कइले बारी, एही ख़ुशी में ऊ बेंच बजा बजा के गा रहल बा. खदेरन जीभ में अंगूरी लगा के सिटी बजा रहल बा,ढ़ोंढा के पेट ख़राब बा एसे ऊ अस्थिर बईठल बा, मंगरुआ बैताल लेखा नाच रहल बा तब तक मास्टर साहेब के प्रवेश होता, सभे हड़बड़ा के अपना सिट पर बइठ जाता )
मास्टर साहेब – काहे जी किसका परछावन कर रहे हो तुम लोग, क्लास को कभी त क्लास रहने दो...डिस्को बार बना के धर दिया है सब...आज मिजाज ठीक नहीं है ना त अभिये लगाते सबको चार-चार डांटा. चलो किताब निकालो सब.
(मंगरू मास्टर साहेब के बताशा देता)
मंगरू- मास्टर साहेब हई लीं बताशा खाई.
मास्टर साहेब – काहे जी फेर तुम्हारे घर कौनो भाई-बहिन पैदा हुआ है का? आरे तुम्हारे बाबूजी को केतना समझाए थे की चार गो बाल-बच्चा कम नहीं न होता है, अब रहने दो बाकी मानता ही नहीं है .
मंगरू – बाक ... ऊ बात नईखे, अबकी के बोर्ड के परीक्षा में लबेदवा के चचेरा भाई के चचेरी साली टॉप कईले बिया..ओही ख़ुशी में लबेदवा सब कोई के बताशा खियावत बा, रउओ खाई.
मास्टर साहेब – एकरे के कहल जाता है बेगाना बियाह में अब्दुल्ला दीवाना, आरे अपना पढाई के तनिको ध्याने नहीं है आ चचेरा भाई के चचेरी साली पर मिठाई बंटा रहा है. लगेंगे सोंटवसने त सालियों नहीं आएगी बचाने.
खदेरन- काहे मारसायेब एमे का गलत बात बा केहू के सफलता पर ख़ुशी मनावल गलत बा का?
मास्टर साहेब – नहीं ऊ गलत नहीं है बाकी मिठाई बांटने से बन्हिया होगा की उसके जईसन बनने का सपना देखो आ उसको पूरा करो.
खदेरन – सपना से राते के सपना याद आ गईल, कहीं का मारसायेब ?
मास्टर साहेब – चलो बको, का जाने तुम्हारे सपने से कुछ सिखने लायक बात निकले क्लास के लिए.
खदेरन- अन्हरिया कूच-कूच रात रहे...हम छत पर गेनरा बिछा के सुतल रही...कबो झींगुर के आवाज आवे त कबो सियार हुंआं-हुंआं करे.
(बात काट के ढ़ोंढा कहले)
ढ़ोंढा- बंद करवाईं ना मारसायेब हमरा डर लागत बा.
मास्टर साहेब-(मुंह अईठ के) डर लागत बा, एहिसे हम बोलते हैं कपालभारती करो डर-भय नहीं लगेगा....ऐ खदेरन तुमको सपना सुननाने के लिए कहे हैं तो तुम लगे भुतहा कहानी कहने....सीधा-सीधा सपना कहो ना त बईठ जाओ.
खदेरन- डेराह त बा बाकी हमनी खातिर ना आवे वाला सिक्षा के भविष्य खातिर. हं त हम देखनी की हमनी सब बरहम बाबा के लगे कबड्डी खेलत बानी स तबले एक आदमी माथ पर मोटरी लेले डकरत आ रहल बा-“डिग्री लियाई डिग्री...मेट्रिक के डिग्री,इंटर के डिग्री,बीए हो चाहे बीएड के, एमए के लेलs पीएचडी, डिग्री लियाई डिग्री”...माने की ओकरा लगे सब डिग्री रहे हम त भकुआ गईनी की भाई रे बिना पढाई कईले हई सब डिग्री मिली त देश के का होई.
(बात काट के लबेदा कहले)
लबेदा- ओकर त दुईये मिनट में सब डिग्री बिका गईल होई रे खदेरन.
मास्टर साहेब- बीच में बोलने का बेमारी है का तुमको, अबकी बोल दिए तो कान उखाड़ लेंगे..बुझे की नहीं...हं त खदेरन उसके बाद का हुआ?
खदेरन- ओकरा बाद त भीड़ हो जाता, ओही चबूतरा पर ओकर मोटरी खुलल आ परदेसी चा आईटीआई के डिग्री लेहले, लबेदवा के चचेरा भाई के चचेरी साली इंटर में टॉप करे के डिग्री लेहली, रजाक मियाँ के आठो लड़ीकवा मेट्रिक के डिग्री लेलन स बाकी उनकर चारो बेटिया के कुछ ना किनाइल त रोअत घरे चल गईली स, हरिंदर भईया के आईटीआई के डिग्री ना मिलल त ऊ बीटेक के डिग्री किनलें, एही तरीका से सभे कुछ ना कुछ किनल आ ओकर पूरा मोटरी ओही चबूतरा पर बिका गईल.
लबेदा- (उदास मन से) बाक रे मरदे आ हम कुछो ना लेनी का?
खदेरन- हं तोरा थर्ड डिवजन के मेट्रिक के डिग्री मिलल काहे की सब बिका गईल रहे, बाकी तोड़ बाबूजी छीन के फाड़ देहले आ तोड़ा के घास झारे आला लबेदा से हुन्क्ले. उनकर इच्छा रहे की तू इंटर के डिग्री लेले रहते.
मास्टर साहेब- छी छी छी केतना ख़राब समय आ गया है, अब डिग्री भी अईसे मोटरी में बिका रहा है, बताओ त हमारे बच्चों का भविष्य केतना अन्हार में जा रहा है. सबसे जादा दोषी है खरीदने वाला.
खदेरन- ए मारसायेब रौवो ओजा से बीएड के डिग्री किन्वीं. (सब लड़िका ठठा के हंसले)
मास्टर साहेब – नहीं सुधरेगा का जी तुम लोग, हमारे नोकरिया से सौतिया-डाह काहे रखते हो..अब त हम तुम लोग से अतना परसान हो गए हैं की का कहें. बहुत मेहनत से नोकरी पायें है नहीं तो तुम लोग के कारण कबो-कबो मन त करता है की रिजाइन मार दें.
मास्टर साहेब – काहे जी किसका परछावन कर रहे हो तुम लोग, क्लास को कभी त क्लास रहने दो...डिस्को बार बना के धर दिया है सब...आज मिजाज ठीक नहीं है ना त अभिये लगाते सबको चार-चार डांटा. चलो किताब निकालो सब.
(मंगरू मास्टर साहेब के बताशा देता)
मंगरू- मास्टर साहेब हई लीं बताशा खाई.
मास्टर साहेब – काहे जी फेर तुम्हारे घर कौनो भाई-बहिन पैदा हुआ है का? आरे तुम्हारे बाबूजी को केतना समझाए थे की चार गो बाल-बच्चा कम नहीं न होता है, अब रहने दो बाकी मानता ही नहीं है .
मंगरू – बाक ... ऊ बात नईखे, अबकी के बोर्ड के परीक्षा में लबेदवा के चचेरा भाई के चचेरी साली टॉप कईले बिया..ओही ख़ुशी में लबेदवा सब कोई के बताशा खियावत बा, रउओ खाई.
मास्टर साहेब – एकरे के कहल जाता है बेगाना बियाह में अब्दुल्ला दीवाना, आरे अपना पढाई के तनिको ध्याने नहीं है आ चचेरा भाई के चचेरी साली पर मिठाई बंटा रहा है. लगेंगे सोंटवसने त सालियों नहीं आएगी बचाने.
खदेरन- काहे मारसायेब एमे का गलत बात बा केहू के सफलता पर ख़ुशी मनावल गलत बा का?
मास्टर साहेब – नहीं ऊ गलत नहीं है बाकी मिठाई बांटने से बन्हिया होगा की उसके जईसन बनने का सपना देखो आ उसको पूरा करो.
खदेरन – सपना से राते के सपना याद आ गईल, कहीं का मारसायेब ?
मास्टर साहेब – चलो बको, का जाने तुम्हारे सपने से कुछ सिखने लायक बात निकले क्लास के लिए.
खदेरन- अन्हरिया कूच-कूच रात रहे...हम छत पर गेनरा बिछा के सुतल रही...कबो झींगुर के आवाज आवे त कबो सियार हुंआं-हुंआं करे.
(बात काट के ढ़ोंढा कहले)
ढ़ोंढा- बंद करवाईं ना मारसायेब हमरा डर लागत बा.
मास्टर साहेब-(मुंह अईठ के) डर लागत बा, एहिसे हम बोलते हैं कपालभारती करो डर-भय नहीं लगेगा....ऐ खदेरन तुमको सपना सुननाने के लिए कहे हैं तो तुम लगे भुतहा कहानी कहने....सीधा-सीधा सपना कहो ना त बईठ जाओ.
खदेरन- डेराह त बा बाकी हमनी खातिर ना आवे वाला सिक्षा के भविष्य खातिर. हं त हम देखनी की हमनी सब बरहम बाबा के लगे कबड्डी खेलत बानी स तबले एक आदमी माथ पर मोटरी लेले डकरत आ रहल बा-“डिग्री लियाई डिग्री...मेट्रिक के डिग्री,इंटर के डिग्री,बीए हो चाहे बीएड के, एमए के लेलs पीएचडी, डिग्री लियाई डिग्री”...माने की ओकरा लगे सब डिग्री रहे हम त भकुआ गईनी की भाई रे बिना पढाई कईले हई सब डिग्री मिली त देश के का होई.
(बात काट के लबेदा कहले)
लबेदा- ओकर त दुईये मिनट में सब डिग्री बिका गईल होई रे खदेरन.
मास्टर साहेब- बीच में बोलने का बेमारी है का तुमको, अबकी बोल दिए तो कान उखाड़ लेंगे..बुझे की नहीं...हं त खदेरन उसके बाद का हुआ?
खदेरन- ओकरा बाद त भीड़ हो जाता, ओही चबूतरा पर ओकर मोटरी खुलल आ परदेसी चा आईटीआई के डिग्री लेहले, लबेदवा के चचेरा भाई के चचेरी साली इंटर में टॉप करे के डिग्री लेहली, रजाक मियाँ के आठो लड़ीकवा मेट्रिक के डिग्री लेलन स बाकी उनकर चारो बेटिया के कुछ ना किनाइल त रोअत घरे चल गईली स, हरिंदर भईया के आईटीआई के डिग्री ना मिलल त ऊ बीटेक के डिग्री किनलें, एही तरीका से सभे कुछ ना कुछ किनल आ ओकर पूरा मोटरी ओही चबूतरा पर बिका गईल.
लबेदा- (उदास मन से) बाक रे मरदे आ हम कुछो ना लेनी का?
खदेरन- हं तोरा थर्ड डिवजन के मेट्रिक के डिग्री मिलल काहे की सब बिका गईल रहे, बाकी तोड़ बाबूजी छीन के फाड़ देहले आ तोड़ा के घास झारे आला लबेदा से हुन्क्ले. उनकर इच्छा रहे की तू इंटर के डिग्री लेले रहते.
मास्टर साहेब- छी छी छी केतना ख़राब समय आ गया है, अब डिग्री भी अईसे मोटरी में बिका रहा है, बताओ त हमारे बच्चों का भविष्य केतना अन्हार में जा रहा है. सबसे जादा दोषी है खरीदने वाला.
खदेरन- ए मारसायेब रौवो ओजा से बीएड के डिग्री किन्वीं. (सब लड़िका ठठा के हंसले)
मास्टर साहेब – नहीं सुधरेगा का जी तुम लोग, हमारे नोकरिया से सौतिया-डाह काहे रखते हो..अब त हम तुम लोग से अतना परसान हो गए हैं की का कहें. बहुत मेहनत से नोकरी पायें है नहीं तो तुम लोग के कारण कबो-कबो मन त करता है की रिजाइन मार दें.
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अंक - 84 (14 जून 2016)
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