रतिया क देखलीं सपनवाँ अंगनवाँ - हरिवंश पाठक 'गुमनाम'

रतिया क देखलीं सपनवाँ अंगनवाँ
टह-टह लाल कचनार
नेहिया क बिरवा क लामी-लामी पतिया
पतिया से भेजे अँकवार।

मुँहवाँ क पनियाँ में मनवाँ धोराइल
आगि क लवरि अँगिराय,
अथरा क तरवाँ न चनवाँ ढँपाला
रूपवा न घुँघटा अमाय।
थहरत अंग-अंग सँचवा क ढारल
लरजल मन सुकवार।। टह-टह...

दरकलि अँगिया दरजिया पठौतीं
हियरा पठाईं कवन ठाँव,
तोरि-तोरि सपना मिलाइ देत मटिया
भइलि बदनाँव।
उचटलि निनियाँ मनवले ना माने
आँखि-आँखि होत भिनुसार।। टह-टह...

जिनिगी क रतिया, सनेहिया क निनियाँ
मटिया क सपना जवान,
का देइ मनवाँ क बबुआ मनाईं,
खेले के माँगेला चान।
काँची उमिरिया छोहाइल छतिया
अँखियन ढुरुके दुलार।। टह-टह...

मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन
जोगवत जिनिगी ओराय,
सगरी उमिरिया दरदिया क बखरा
छतिया क अगिया घुँआय।
बूड़ि जात कजरा में अँचरा क कोरवा
लोरवा लिखल बा लिलार।। टह-टह...
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हरिवंश पाठक 'गुमनाम'
अंक - 82 (31 मई 2016)

1 टिप्पणी:

  1. एह सभे मुक्तकन के गुमनाम जी का मुह से हम नब्बे का दसक में कई बेर कवि सम्मेलनन में सुन चुकल बानी। बेजोड़। उहाँ के दुलार पावेवाला भाग्यशाली हमहूँ रहल बानी।
    रामरक्षा मिश्र विमल

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