पिया नाही घरवाँ - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

चढ़ी गइलें चैत खुमार हो रामा। पिया नाही घरवाँ॥ 

केकरा से उचरीं हम मनवां क पीरिया
पिया के पिरितिया मे पागल तिरिया 
नन्हके बा देवरो हमार हो रामा। पिया नाही घरवाँ॥ 

ओठवे पर नाचत मधुरी मुसुकिया
मन मोर डहकत लेता सुसुकिया 
देहिया मथत बोखार हो रामा। पिया नाही घरवाँ॥ 

अंग अंग मोर पिरित के पियासल
तोरे बिन सजना सेजरियों उदासल 
लहे लहे बहत बेयार हो रामा। पिया नाही घरवाँ॥ 
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अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)

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