उसर भइल नेह क थाती
कहवाँ हेरी आपन माटी।
धावल धुपल गाँव पहुचलीं
मुँह बनवले मिलल संघाती।
बिला गइल हवा क खुसबू
पीपरो के छांह नदारत बा।
सउसें कचरा भरल मन
दिल में दरार पारत बा।
दुअरा न बाबा मिललें
घरे न दिखलिन दादी।
चहक दिखल न कतहूँ
दिखल सउनाइल खादी।
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अंक - 79 (10 मई 2016)
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