धोती अउरी अँगौछी ले के
घाट-घाट का खोजऽ तारऽ?
पियरी का सगरी लाल हो जाई
जेकरा के जे तू खोजऽ तारऽ?
माटी हऽ ई माटी नियर रही
जामी फरी फेर जरी जाई
इहे एकर सगरी उधापन
कि फरत जाओ बहत जाओ
जाके डहरी सटत जाओ
का इहे तूहूँ चाहऽ तारऽ?
केतनो तू दंवरी करऽ
चाहें इनारे ढ़ेकूल चढ़ावऽ
लगुसी से बादर खोदऽ
भा पोखरा तू खोनवावऽ
भरि अंजूरी बस पानी चढ़ि
का एतता तू जानऽ तारऽ?
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 82 (31 मई 2016)
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