हम टीचर हईं - केशव मोहन पाण्डेय

लोग हमरा के
धरती पर बोझा कहेला
अब त अति हो गइल भाई
अन्हें ना
मुँहवे के सोंझा कहेला
तबो हम कहत बानी
मथमहोर ना हईं
हमरो आपन पहचान बा
कवनो चोर ना हईं।
हमार इतिहास बहुत पुरान बा
हमरे कारण अर्जुन, कर्ण, एकलव्य,
चन्द्रगुप्त, अशोक आदि के पहचान बा
जी भाई
हम टीचर हईं
हम आज के टीचर हईं
हमरा नियत पर
बट्टा लगा के
चरित्र के चासनी में नहवा के
लोग कहेला
कि कीचड़ हईं
हम त
टीचर हईं।
लोग कहेला
त कहला के परवाह नइखे
ईहो बात सही बा
कि हमरा पक्ष में
केहू गवाह नइखे
तबो हम अपना धून में मगन रहेनी
काहें कि
रोज लइका पढ़ावे नी
नाक पोंछेनी
जब अकेले रहेनी
त बड़ा गर्व से सोचेनी
कि ई त काम ह 
महतारी के
हमरा एह काम के निहारी के
का एगो टीचरे चरित्रहीन बा
बाकी सगरो दुनिया जहीन बा?
तब बाबा लोग
जेल में काहें बा
प्रॉपर्टी बढ़ावत बा
निन्यानबे के खेल में काहें बा
कुछ देर बाद
अपनही जवाब मिल जाला
चेहरा हमार खिल जाला
कि हम लइका पढ़ावेनी
आ ऊ दुनिया पढ़ावेले
हम तकदीर बनावेनी
ऊ माथा बिगाड़ेले 
तब्बे एतना भेद बा
चलनी हँसेले सूपा के
जवना में अपनहीं
छिहत्तर गो छेंद बा।
तब खुश हो जानी
अपना नाक पोंछला के काम से
लइका पढ़वला के ईनाम से 
कि केहू से त हमरो गुन मिलेला
अरे भाई
ए कीचड़े में त कमल खिलेला॥
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अंक - 82 (31 मई 2016)

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