कइसे मानीं हम जोत चान-सूरुज के उतरल माटी में?
कइसे मानीं भगवान समा गइलन मानुस के काठी में?
जर गइल फिरंगिनि के लंका, बाजलि आजादी के डंका,
अइसन अगिया बैताल जगवलन कइसे एक लुकाठी में ?
कइसे मानी हम बापू के परगास नजर से दूर भइल ?
अबहूँ बाड़न ऊ आसमान के चमचमात जोन्हीं अइसन!
जे भूल गइल बापू के उनका खातिर घुप्प अन्हरिया बा।
जे उनुकर नीति निबहले बा उनुका खातिर दुपहरिया बा।
जेकरा भीतर के आँख रही, ऊ बापू के अबहूँ देखी।
जे आन्हर बा उनुका खातिर त परबत बनल देहरिया बा।
हम समुझत बानीं मौत खेल ह, एगो आँखमिचौनी सन।
बापू रहलन इंसान बात ई लागत अनहोनी अइसन।
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लेखक परिचय:-
नाम: कलक्टर सिंह ‘केसरी’
जनम: 1909
निधन: 18 सितम्बर 1989
जनम थान: एकवना घाट, भोजपुर, बिहार
अंक - 82 (31 मई 2016)
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