कबो-कबो होला अइसन
कि फंसरी में जीव परेला।
रहिया ओढन बासन-डासन
बाति सगरी हो जाला गुमानी
जइसे सरसों के फूल पे
लाही जाड़ा में गिरेला।
तूरि के खुँटा काहाँ ले जइब
चारू ओर चघोटबऽ
फेर भइला पऽ साँझि
डहरी घर धरेला।
गइयो हँ भँइसियो हँ
इहे जिनगी में घोराइल
कि बा फाँस गजबे कसाइल
कि अँखिया से लोर के रेला।
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लेखक परिचय:-
नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
अंक - 80 (17 मई 2016)
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