आयल मधुमास कोयलिया बोले .
लाल लाल सेमरु पलास बन फूले
सुमनो की क्यारी में भँवरा मन डोले,
किसलय किशोरी डारन संङ झूले
महुआ मगन हो गन्ध द्वार खोले.
आयल मधुमास कोयलिया बोले .
सुगन्धित पवन भइ चलल होले होले
ढोलक मंजिरा से गूँजल घर टोले,
रंग पिचकारी मिल करत किकोले
छनि छनि भंग सब बनल बमभोले.
आयल मधुमास कोयलिया बोले .
उड्ल गुलाल लाल भर भर झोले
मीत के एहसास बढल मन के हिडोले,
धरती आकाश सगरे प्रेम रस घोले
मख्खियन के झुण्ड पराग के टटोले.
आयल मधुमास कोयलिया बोले .
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अभय कृष्ण त्रिपाठी "विष्णु"
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