जे बा दीहले रतन, बबुआ करिह जतन - राधामोहन चौबे 'अंजन'


जे बा दीहले रतन, बबुआ करिह जतन 
ई ह सोना ना माँटी मिलावे होई।
अइसन अनमोल धन, पवल मानुष के तन 
कर्ज बाटे त मन से चुकावे होई।।

कहि के आपन भुला गइल सपना के धन 
कहियो अचके हेराई, खुली जब नयन।
केहू के सिरिजल चमन, चमके झिलमिल सुमन
आन्ही-तूफान सबसे बँचावे होई।।

चारि दिन के झमेला बा, मेला हवे
नइख बूझत मदारी के खेला हवे।
केतना बाटे जलन, केतना बाटे तपन
नेह-नाता ना कवनो लगावे होई।।

देख जागल बा जे, जे बा उधिया गइल
केहू धइले ना बाटे जे बा पा गइल।
रचि के ‘अंजन’ नयन, जे बा पवले घुटन
देखि दरपन सुरतिया लगावे होई।।

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लेखक परिचय:-

नाम: राधा मोहन चौबे 'अंजन'
जनम: 4 दिसम्बर 1938
जनम थान: शाहपुर-डिघवा, थाना-भोरे
गोपालगंज, बिहार
रचना: कजरौटा, फुहार, संझवत, पनका, सनेश, कनखी, नवचा नेह, 
अंजुरी, अंजन के लोकप्रिय गीत, हिलोर आदि 
अंक - 74 (05 अप्रैल 2016)

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