चढ़ल जवानी हमार भइल बा महुवा
अब न कटाई दीदी हमरा से गँहुवा
बथे कलाई हम चूर चूर न धरातारे मूठी
दिदिया रे! बड़ा गड़ता खूँटी।
जरता चाम घाम लागता बड़ा
देहिया मुलायम सारा भइल जाता कड़ा
भइल बइमान हमार धुपे में बेना
सुखत नइखे हमरा देह के पसेना
कुहले बदन हमार कोर कोर
हम बइठीं ना ऊठीं
दिदिया रे! बड़ा गड़ता खूँटी।
डाँड़ में दरद होला काटिं जब निहूर के
गोड़वो में चूभे बड़ा रहिलें सिहूर के
लारा पुआर भइल जातालें मनवा
गरम ताव झोंकताने पवनवा
जोबन से चुवतलें लोर लोर
अब देबे ना छूटी
दिदिया रे! बड़ा गड़ता खूँटी।
लागल तारास एगो ईहे बा ईच्छा
महेस खेसारी सँघे बइठीं बगीचा
लसर फसर भइल चाचा गोदाम में
अब नाहिं मन हमार लागता काम में
करिया हो गइल देह गोर गोर
बड़ा फेंक त लूटीं
दिदिया रे! बड़ा गड़ता खूँटी।
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अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)
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