बीरन के अगुवा - डा. बच्चन पाठक 'सलिल'

बीरन के अगुवा


बीरन के अगुवा, सवांग राजा भोज के
बाबु कुंवर सिंह हमरो सलाम ली.
उमर मे अस्सी के, बीतलो प चार पन
कइली जे कीरति, से जग मे सुनाम ली.


आइल बा आजुओ विपत्ति रउरा भारत पर

केसर-कियारी मे पापी समाइल बा.
रउरा निश्चिंत रही, लिखिया भुलाइ ना
भारत के जन-जन मे जोश भरि आइल बा.

लतिया के एक-एक एह उग्रवादिन के
भारत के बाहर हमनी भगाइब जा.
रउरा पुरनिया के तेज के कसम बाटे
माई के दुध नाही हमनी लजाइब जा.
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बरखा के दिन

बरखा के रिमझिम फुहार, अंग-अंग सहला गइल
बकुलन के उज्जर कतार, तन-मन बहला गइल।
पर्वत पर रूई के मेघ,
सुनेले यक्षी-संदेश ;
धीरे से पुरवैया मीत,
छुएले गोरी के केश।
अमृत भरल जल-धार, धानन के नहला गइल।
नदियन के आइल उठान,
कदराइल झीलन के देह ;
बोरो जे उगल अकास,
देखि रहल माटी सस्नेह।
टूटल बा मोतिन के हार, गाँवन के अगरा गइल।
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भोर 

दक्खिन से आइल ई हउवा कॅुवरकी
गत्तर-गत्तर गुदरा जाले ;
लहर उढे झीलवा में जइसे
नयकी धियवा अगरा जाले।
कुंजन के लिलरा पर शबनम के बिंदिया
देखि-देखि कोइलरि चिहाइ ;
उगल किरिनिया पहाड़ी पर पहुँचल,
सोना के आँचर फहराइ।
कइसे वताईं कतना उठल बा,
रूप के समुन्दर हिलोर ?
डतरल बा सीखे सरग ई एहिजा,
कि आइल पहाड़िन पर भोर ?
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मन बृंदावन

जब हमार लागेला ध्यान, लउकेले श्रीकृष्ण भगवान।
मुरली बजावत आनन्द वरिसावेले, एह युग में शान्ति-गीत गावेले।
तब लागेला, हमार ई मन, साँचो के भइल बा वृन्दावन।
जब हम रहीला जागल, शान्ति रहेले भागल।
तब चेतना समुझावेले, हमरा के बतावेले, आधा मन बृन्दावन धाम,
आधा लिखाइल बा, कालिया नाग के नाम।
ओहिजा बा ईर्ष्या आ द्वेष, कइसे रही शान्ति के लवलेस।
चाहतारऽ कि आनन्द पावऽ त आधा ना, पूरा मन के वृन्दावन बनावऽ।
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लेखक परिचय:-


नाम: डा. बच्चन पाठक 'सलिल' 
जनम: 17 सितंबर 1937
मरन: 10-04-2016
जनम थान: रहथुआ, भोजपुर, बिहार
रचना: मन के गीत सुनाईल, सेमर के फूल

अंक - 75 (12 अप्रैल 2016)

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