लाग गइल नजरी उलटा गगनवाँ में,
लाग गइल नजरी।।
ना देखीं मेघमाला, ना देखीं बदरी।
टपकत बुन्दवा भींजे मोरा चुन्दरी।।
पेन्हीले सबुज सारी बटिया चलीले झारी ;
चलत चलत गइल हरि जी का नगरी।।
एह पार गंगा, भइया ओह पार जमुनी,
बिचहीं जसोदा माई तनले बारी चदरी।।
कहेलन मनसा राम, सुन ऐ कंकाली माइ
हमरा के छोड़ देलु ईसर जी के कगरी।।
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मनसा राम
अंक - 72 (22 मार्च 2016)
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