होरी आइल बा - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

फगुनवा में 

बियहल तिरिया के मातल नयनवा, फगुनवा में॥ 
पियवा करवलस ना गंवनवा, फगुनवा में॥ 

सगली सहेलिया कुल्हि भुलनी नइहरा। 
हमही बिहउती सम्हारत बानी अँचरा। 
नीक लागे न भवनवा, फगुनवा में॥ 
पियवा ..... 

पियराइल सरसों मटरियो गदराइल। 
फुलल पलास बा महुअवों अदराइल। 
बदले लागल नजर जमनवा, फगुनवा में॥ 
पियवा .... 

नाही सहाला अब भउजी क चिकोरी। 
रही रह रिगावे हमरा धई बरजोरी। 
बीख लागल सगरी कहनवा, फगुनवा में॥ 
पियवा ...... 
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एही होरिया में 

मनवा के भीतरी के खुन्नस मेटाइब 
दुअरे दुअरे जाई के फगुओ सुनाइब 
करबे जी भर धमाल एही होरिया में। 
उड़ी अबीर गुलाल, एही होरिया में॥ 

सगरों सिवनवाँ मे सरसों फुलाइल 
ललका पलसवो बने मे इतराइल 
होइहें धरती खुसहाल एही होरिया में। 
उड़ी अबीर गुलाल, एही होरिया में॥ 

आमवा के मोजरी पर कोइलर कुंहुकल 
मनवा बा मातल देहियों बा महकल 
निरखे गोरिया निहाल एही होरिया में। 
उड़ी अबीर गुलाल, एही होरिया में॥ 

मसती मे मातल नवकों पुरनको 
जगल अरमान न सुधरल जवनको 
डाहे लाले लाल गाल एही होरिया में। 
उड़ी अबीर गुलाल, एही होरिया में॥ 
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गाँव हमरे 

आपसी सनेह क सिंगार गाँव हमरे। 
उड़े लागल रंग आ गुलाल गाँव हमरे॥ 

राते अँखियो ना नींद, जबले आइल बसंत। 
दिने दिलवा बेचैन, याद आंवे हमरो कंत। 
संसियों मे होला मनुहार, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

जबले भइलें अंजोर, दिल भइल सहजोर। 
हर गलियन मे शोर, अब नाचे मन मोर। 
लागल थिरके गोरिया क पाँव, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

बढ़ल मसती के ज़ोर, फुलल सरसों चहूँओर। 
सगरों गोरिया विभोर, भइल होरिया के शोर। 
रूनक झुनक बाजेले पायल पाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 

करे सभे केहु प्रयास, होई देश के विकास। 
फरी फुली हर समाज, बाटे सभका के आस। 
तब्बे आई अच्छे दिन के ठाँव, गाँव हमरे॥ 
उड़े लागल... 
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खेलन को होरिया 

सखी, घरे मोरे अइने नंदलाल॥ 
खेलन को होरिया॥ 

हुलसत हियरा अँखियो मातल 
सखी तलफत राधिका बेहाल॥ खेलन को होरिया॥
सखी, घरे मोरे अइने नंदलाल॥ खेलन को होरिया॥ 

रहिया निहारत भइल दुपहरिया 
बुझत तानी कान्हा के चाल॥ खेलन को होरिया॥ 
सखी , घरे मोरे अइने नंदलाल॥ खेलन को होरिया॥ 

छेड़ छाड़ भा नयन मटक्का 
मचलत मन बा निहाल॥ खेलन को होरिया॥ 
सखी, घरे मोरे अइने नंदलाल॥ खेलन को होरिया॥ 

एगो हाथ मे बा पिचुकारी 
दूसरों मे रंग गुलाल॥ खेलन को होरिया॥ 
सखी, घरे मोरे अइने नंदलाल॥ खेलन को होरिया॥ 

भींजल अंगिया चुनर मोर उलझल 
रंग दीहने मोर गाल॥ खेलन को होरिया॥ 
सखी, घरे मोरे अइने नंदलाल॥ खेलन को होरिया॥ 
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होरी आइल बा 

देश जरत बा धू धू कईके 
सद्बुद्धि हेराइल बा॥ 
कइसे कहीं कि होरी आइल बा॥ 

चंद फितरती लोग बिगाड़ें 
मनई इनकर नियत न ताड़ें 
मगज मराइल ए बेरा में 
भा कवनों बिपत समाइल बा॥ 
कइसे कहीं कि होरी आइल बा॥ 

बुढ़ पुरनियाँ लईका औरत 
आग लगावत सगरों दउरत 
सरकारी गेहूं के संगे 
घुनवो आज पिसाइल बा॥ 
कइसे कहीं कि होरी आइल बा॥ 

टूटल जाता गाँव के मड़ई 
सुखल जाता प्रेम के गडही 
मारे डर के दुबकल घरहीं 
पानी बिना झुराइल बा॥ 
कइसे कहीं कि होरी आइल बा॥ 

नवटंकी बहुते बा भारी 
रौंदाइल बा स्नेहिल क्यारी 
नोट वोट के जोड़ तोड़ में 
भर देशवा अइठाइल बा॥ 
कइसे कहीं कि होरी आइल बा॥
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लेखक परिचय:-


मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 72 (22 मार्च 2016)

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