अवधू गागर - संत गोरखनाथ

अवधू गागर कंधे पांणीहारी, गवरी कन्धे नवरा।
घर का गुसाई कोतिग चाहे काहे न बन्धो जोरा।

लूंण कहै अलूणा बाबू घृत कहै मैं रूषा।
अनल कहै मैं प्यासा मूवा, अन्न कहै मैं भूखा। 

पावक कहै मैं जाडण मूवा, कपड़ा कहै मैं नागा। 
अनहद मृदंग बाजै तहाँ पांगुल नाचन लागा। 

आदिनाथ बिह्वलिया बाबा मछिन्द्रनाथ पूता।
अभेद भेद भेदीले जोगी बद्न्त गोरष अवधूता।
----------------------------------

लेखक परिचय:-

१०वी से ११वी शताब्दी क नाथ योगी







अंक - 56 (1 दिसम्बर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.