अवधू गागर कंधे पांणीहारी, गवरी कन्धे नवरा।
घर का गुसाई कोतिग चाहे काहे न बन्धो जोरा।
लूंण कहै अलूणा बाबू घृत कहै मैं रूषा।
अनल कहै मैं प्यासा मूवा, अन्न कहै मैं भूखा।
पावक कहै मैं जाडण मूवा, कपड़ा कहै मैं नागा।
अनहद मृदंग बाजै तहाँ पांगुल नाचन लागा।
आदिनाथ बिह्वलिया बाबा मछिन्द्रनाथ पूता।
अभेद भेद भेदीले जोगी बद्न्त गोरष अवधूता।
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लेखक परिचय:-
नाम: संत गोरखनाथ
१०वी से ११वी शताब्दी क नाथ योगी
अंक - 56 (1 दिसम्बर 2015)
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