चलि रे अबिला कोयल मौरी
धरती उलटि गगन कूँ दौरी।
गईयां वपडी सिंघ नै घेरै
मृतक पसू सूद्र कूँ उचरै।
काटे ससत्र पूजै देव
भूप करै करसा की सेव।
तलि कर ढकण ऊपरि झाला
न छीजेगा महारस बंचैगा काला।
दीपक बालि उजाला कीया
गोरष के सिरि परबत दीया।
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लेखक परिचय:-
नाम: संत गोरखनाथ
१०वी से ११वी शताब्दी क नाथ योगी
अंक - 52 ( 3 नवम्बर 2015)
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