केकर के दुलरुवा बाटे,
सुनल जाई गुनल जाई।
नीमन लागी त ठीके बा,
नाही त भर मन धुनल जाई॥
पाकल खेत आ बनल लईकी,
दोसरा भरोष न छोडल जाई।
जे भी संगे आ खाडियाई,
मय बिरोध पर तोड़ल जाई॥
माहौल बने त बन जायेदा
भाषा बम भी फोड़ल जाई।
बिन पेनी के लोटा नीयन,
केहु क चदरी ओढ़ल जाई॥
साम दाम आ दंड भेद पर,
नवका राग बजावल जाई।
धरम जात के बात नहीं कुछ,
सुतल भाग जगावल जाई॥
कुरसी चाही, केनियों मिले,
पार्टीन के हिलावल जाई।
पाँच साल तक आँख मूद के,
देश के बिलवावल जाई॥
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लेखक परिचय:-
नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र:
सी-39 ,सेक्टर – 3
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
अंक - 55 (24 नवम्बर 2015)
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