केकरा के कोसीं केकरा के सराहीं,
मुँह फेरीं केकरा से, केकरा के चाहीं
आस बिस्वास टूटल खात-खात धोखा
ओकरे से दागा मिलल जेके देनी मोका ।
ऊ त खुशहाल बाड़ें, हमरा तबाही।।
भइंस आगे बीन के बजावल बकवासी ।
कुकुरे सियार के बा कुंडली में कासी।
बकुला दे भासन, हंस पीटे बाहबाही ।।
बनरा के चाल धइलें जनता अनाड़ी
नेतवा नचावे तबसे बनके मदारी
ठग ना उपास पड़ी, लोभी भइलें दाही ।।
केहू देखे जात धरम, भाई आ भतीजा
चुनाव में बिकाये वाला, सोंचे ना नतीजा
ठग के ठगे में भला केकरा मनाही।।
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लेखक परिचय:-
नाम: डॅा० जयकान्त सिंह 'जय'
जनम: 1 नवम्बर 1969
जनम स्थान: मशरक, बिहार
बेवसाय: भोजपुरी विभागाध्यक्ष
एल एस कॉलेज, मुजफ्फरपुर, बिहार
अंक - 49 (13 अक्टूबर 2015)
डॉ जयकांत सिंह ‘जय ’ के रचना केकरा के कोसीं केकरा के सराहीं, पसंद आइल. चुनाव में नेता मदारी आ जनता बनरी नियर नाचत बिया, ई उपमा दिल के छू देलस.
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