सोनारा के ना मोह बा - आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत

गहना के रूप से सोनारा के ना मोह बा
आगी पर ओके गला देला
आ खाँटी सोना के निकालि लेला
नया गहना ओकरा से गढ़ि लेला
केहू के रूप से प्रभु के ना मोह लागे
आत्मा के लेके ऊ रहि जालें
फेरू नया रूप दे देले।
-------------आचार्य श्रद्धानन्द अवधूत
अंक - 46 (22 सितम्बर 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.