केवनो आदमी के निर्मान में ओकरा समाज औरी परिवेस के बहुत बड़हन जोगदान होला। ऊ समाज औरी परिवेस जेवना में आदमी शुरूआती जिनगी बीतावेला ऊ जाने अनजाने सगरी जिनगी साथ निभावेला औरी जब ई बात ऊ आदमी के बुझाला तऽ ऊ मनई कोसिस करेला कि ओ माटी के मिठास अपनी औरी दूसरी के जिनगी धोर सके। लागता इहे बात राहुल की के संगे भी रहे। जब उहाँ के सगरी दुनिया देख लिहनी; मन के हिसाब जी लिहनी औरी पढ लिहनी; तऽ सगरी चीझ वोल्गा से चलि के गंगा तक आ गईल। ई उहे काल रहल बा जब उहाँ के झुकाव ओ महक के ओर घुमल जेवना से उहाँ के जनमनी औरी ऊ झुकाव आ लगाव आठ गो नाटक में हमनी सोझा आइल। जेङने उहाँ अपनी नाटकन में भोजपुरिया समाज के देखवले बानी उ बतावत बा कितना भीतर ई माटी उहाँ में समाईल बे औरी उहाँ के ओके महसुस भी करत बानी। औरी सायद इहे कारन बा कि आज भी उहाँ नाटक नया लागेला।
ए अंक उँहा के एगो नाटक जोंक के एगो अंक भी परस्तुत बा। केतनो कहब कम परी एसे इतने कहि के उहाँ के जनम दिन जेवन 8 अप्रैल के परेला तऽ 14 अप्रैल के दिने इहाँ ई दुनिया छोड़ले रहनी, हमनी के ई अंक के समर्पित कऽ के उहाँ के आपन श्रद्धा सुमन चढावत बानी जा।
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साहित्य कबो लोक से अलगा ना हो सकेला। संभवे नईखे। एसे साहित्य खाती ई बहुत जरूरी बा ऊ अपना लोक, समाज, संस्कार औरी संस्कृति के नाथि के चलो जेसे कि ऊ सभ परम्परन क ना खाली जिन्दा राखे में आपन जोगदान कऽ सके बल्कि ओकरी विकास में सङवई बन सके। संगही ऊ ओ बात औरी कमी के भी सोझा ले आवे के कोसिस करे ताकि ओमें जुग के हिसाब से बदली आ सके जेसे कि केहू जिनगी के भागा-भागी में पीछे ना छूट जाए। ई एगो साहित्य सेवी के जिम्मेवारी औरी कर्तव्य दूनू बा।
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