बनारस के गुंडा शायर तेग अली का बदमाश दर्पण

तेग अली जी के बारे मे हमरा डा. कृष्णदेव उपधिया जी के लिखल किताब मे कुछ पढे के मिलल रहे। इँहा के "बदमास दर्पण" किताब भी छपाईल बिआ जवन की प्रिंट एशिया मे मिल सकेले। इँहा के बनारस के रहे वाला रहनी। करीब करीब 1895 मे इँहा के लिखल किताब "बदमास दर्पण" आईल रहे।
इँहा के बारे मे खोजत रहनी ह त एगो ब्लाग बिनय पत्रिका भेंटाईल ह जहवा इँहा के बारे कुछ जानकारी दिहल बा, खास कई के इँहा के लिखल किताब "बदमास दर्पण" के बारे मे दिहल गईल बा ओह ब्लाग मे हेडिंगे बा की "बनारस के गुंडा शायर तेग अली का बदमाश दर्पण"।
बिनय पत्रिका मे अखिलेस जी लिखत बानी की, तेग अली सांचहु के गुंडा रहले, आ अखिलेस जी इहो लिखत बानी की आजु के साहित्यकार लोगन के तेग अली जी से सीखे जाने के चाही !
तेग अली के बारे मे "बदमास दर्पण" किताब के सम्पादक नारायण दास जी लिखले बानी की छव फुट लामा, मुडि प अंगुठिया बार, आ सोना के रंग लेखा हलुक पिअर पगरी मुडि प बन्हाईल, हाथ मे टीका भर से तनी बेसी तेल पिआवल बांस के लाठी आ ई पहिचान रहे तेग अली के। तेग अली के बारे मे केसवानी जी अपना शीर्षक "एक गुंडा कवि" मे लिखत बानी की ई आजु काल्हु के गुंडा ना हवे, ई डेढ स साल पुरान कासी के गुंडा रहले जिनिकर मकसद रहे गरीब कमजोर मजलुम के रक्षा कईल ओह लोगन प होखे वाला जुलुम से बचावल।
तेग अली जी लिखल कुछ गीत शायरी देखी सभे जवना मे धार्मिक सदभावना के संगे संगे उनुकर अखडपन उनुकर बेबाकी बहुत साफ साफ लउकत बा।
---------
दुआरे राजा के जुआ परल बा जाना ला
रजा अधेली का पत्ती हमार बटले बा॥
---------
रोज कह जाला कि आईला से आवत बाट
सात चौदह का ठेकाना तूं लगावत बाट॥
---------
पेटे पे छुरी धइली ता बोलल कि रामधै
जीयत रहब त फेर न कबौं आज कल करब॥
---------
बिन चुकौले लहू का मोल न छोड़ब तोहे रजा
गोजी से बा कपार गयल फट तोरे बदे॥
---------
हम खरमिटाव कइली है रहिला चबाय के
भेंवल धरल बा दूध में खजा तोरे बदे॥
---------
जरदोजी जूता टोपी डुपट्टा बनारसी
से ले ली आज रजा तोरे बदे॥
---------
भौँ चुमि लेइला केहु सुन्नर जे पाइला।
हम उ हई जे ओठे पै तलवार उठाइला॥
एकरा अलावा तेग अली के लिखल हई भजन देखी सभे-
हम खर मिटाव कैली हा रहिला चबाय के
भेंवल धरल बा दुध मे खाजा तोरे बदे॥
अपने के लोई लेहली है कमरी भी बा धइल
किनली ह रजा, लाल दुसाला तोरे बदे॥
पारस मिलल बा बीच मे गंगा के रामधै
सजवा देइला सोने के बंगला तोरे बदे॥
अत्तर तु मल के रोज नहाईल कर रजा
बीसन भरल धइल बा करावा तोरे बदे॥
जानीला आजकल मे झनाझन चली रजा
लाठी लोहांगी, खंजर अउर बिछुआ तोरे बदे॥
बुलबुल, बटेर, लाल लडावैलै टुकडहा
हम काबुली मंगवली ह मेढा तोरे बदै॥
कासी पराग द्वारिका मथुरा अउरी बृन्दाबन
धावल करैले 'तेग' "कन्हैया" तोरे बदे॥
( लोई - ओढे खाति ह जईसे लेवा ह ओइसही लोई बनल बा, लेवा बिछावे खाति होला आ लोई ओढे खाति होला चदर से बनेला, सियाई लोई मे गझिन होला आ कमर दोसर चीझु ह रउवा सभे देखते बानी)
बिनय पत्रिका प ही एगो गजल बा तेग अली के लिखल उ देखी सभे-
केहु से बाट रजा तु सटल सुनत बाटी
ई काम करत नाही निक हम कहत बाटी॥
सहर मे बाग मे उसर मे बन मे धरती प
तूँ देखले हौअ बंडर मतिन फिरत बाटी॥
ना कवनो काम करीला ना नौकरी बा कहूँ
बईठ क धुर क रसरी रजा बटत बाटी॥
कहे लै फुल के गजरा त सभ केहु हमके
पै तोहरे आंखी मे कांचा मतिन गडत बांटी॥
नाही मुये मे लगवलs रजी तूँ कुछ धोखा
पै आंखि मुन के देखीला तब जिअत बाटी॥
ना घर तु आव लs हमरे ना त बोलाव लs
ए राजा रामधै तोहसे बहुत छकत बाटी॥
रामधै - रामजी के किरिया , राम जी के नाम धई के माने रामधै
ई एगो छोट जानकारी आ नेट प जवन तेग अली जी के बारे मे मिलल ह उ रउवा सभ के सोझा रखनी ह, कि जानकारी होखे।
साभार आ स्रोत - विनयपत्रिका ब्लाग आ अखिलेस जी के , ब्लाग वार्ता मे लाईव हिन्दुस्तान से रवीश कुमार आ बाजे वाली गली से केसवानी जी के। धन्यवाद दिहल चाहब डा. कृष्णदेव उपधिया जी के , उँहा के किताब से भजन लियाईल बा।
--------------- नबीन कुमार
साभार:- आखर

अंक - 14 (10 फरवरी 2015)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.