तनी मांतल जवानी के साजल करीं
फुटहा ढोलक नियन नाहीं बाजल करीं
छूट जाईं ना रउवा बहुत भीड़ बा
तनी अपनो के रउवा पुकारल करीं
मन के कलसी पs कुंठा के काई जमल
नेह के लूंड़ा बान्हि के मांजल करीं
चोख होखे नाहीं दुनियादारी के रंग
नेह-नाता के जामा खंघारल करीं
चित रहब रउवा कब ले उठीं झार के
खुद अहम् के खलीफा पछाड़ल करीं
कान बाजत रही,ना सुना पाई कुछ
चदरी रंग-राग के अब पसारल करीं
बा धरम-जात के अब अन्हरिया बढ़ल
दिल के दियरी चहुँ ओर बारल करीं
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लेखक परिचय:-
कवि एवं लेखक
चंपारण(बिहार)
E-mail:- gulrez300@gmail.com
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