पतई के जिनगी - भोलानाथ गहमरी

डोलि गइल पतइन के पात-पात मन, 

जब से छु गइल पवन।

पाँव के अलम नाहीं
बाँह बे-सहारा,
प्रान एक तिनिका पर
टंगि गइल बेचारा,
लागि गइल अइसे में बाह रे लगन।

रचि गइल सिंगार
सरुज-चान आसमान,
जिनगी के गीत लिखे
रात भर बिहान,
बाँचि गइल अनजाने में बेकल नयन।

देह गइल परदेसी
मोल कुछ पियार के,
दर्द एक बसा गइल
घरी-घरी निहार के,
लुटि गइल जनम-जनम के हर सुघर सपन।
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लेखक परिचय:-


जन्म: 19 दिसंबर 1923
मरन: 2000
जन्म थान: गहमर, गाजीपुर, उत्तरप्रदेश
परमुख रचना: बयार पुरवइया, अँजुरी भर मोती और लोक रागिनी

अंक - 77 (26 अप्रैल 2016)

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