मन लागे ना भितरिया - डॉ.कमल किशोर सिंह

बहे बड़ी बिमल बयरिया हो रामा,
चल बइठे के बहरिया.

पोर, पोर टूटेला गतरिया हो रामा,
मन लागे ना भितरिया.

रतिया के रमणीय चइत के चंदनिया,
बाहरे बिछाव बिस्तरिया हो रामा,
सूतऽ तानी के चदरिया.

सांझ सुबह नीक लागे सिहरावन,
आलस जगावे दुपहरिया हो रामा,
चल बइठे के छहरिया.

कोमल किसलय में फुदुके चिरइया,
झाँकेली झरोखा से बहुरिया हो रामा,
जैसे झांपी के नजरिया.

टहनी प आइल टूसवा टिकोरवा,
प्रकृति लागेली लोरकरिया हो रामा,
झूमी गावेली सोहारिया.

लागे सिरगरम दरिया सागरवा,
छपकेली सजल सुंदरिया हो रामा,
चल पानी के किनरिया.
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लेखक परिचय:-

नाम:डॉ.कमल किशोर सिंह, 
रिवरहेड, न्यू योर्क, अमेरिका
अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)

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