लाग गइल नजरी - मनसा राम


लाग गइल नजरी उलटा गगनवाँ में, 

लाग गइल नजरी।।




ना देखीं मेघमाला, ना देखीं बदरी।

टपकत बुन्दवा भींजे मोरा चुन्दरी।।

पेन्हीले सबुज सारी बटिया चलीले झारी ;

चलत चलत गइल हरि जी का नगरी।।

एह पार गंगा, भइया ओह पार जमुनी,

बिचहीं जसोदा माई तनले बारी चदरी।।

कहेलन मनसा राम, सुन ऐ कंकाली माइ

हमरा के छोड़ देलु ईसर जी के कगरी।।
---------------------------
मनसा राम
अंक - 72 (22 मार्च 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.