धरनीदास (जीवन चरित)

ई धरती, आज हमनी के जहाँ के रहबासी बानी जा; ऊ समाज औरी संस्कृति जेवन हमनी कऽ खून में दउरत औरी दहकत बा उ सभ हमनी कऽ पुरखन कऽ मेहनत कऽ परताप ह। जाने केतने हजार साल ले मेहनत कईल गईल बा औरी जाने केङने-केङने कईल गईल बा। ए काम में सभकर जोगदान बा लेकिन साधु औरी संयासिन के जोगदान बहुत बरिआर बा। ई उ लोग हवन जे जल के सोता के धार बदले के जोर रखले रहलन औरी धार बदल बो कईलन। अईसने संयासिन में संत धरनीदास जी के नाँव आवेला जिन्हा के हजारों-लाखों मानेवाला देस-दुनिया में फइलल बाड़न लेकिन बलिया औरी छ्परा जिलन में इहाँ के माने वालन के संख्या ढेर बा।

जिनगी क जतरा

संत धरनीदास जी के पैदाइस ले के केवनो एगो मत नईखे औरी नाही केवनो बरिआर साक्ष्य बा जेवना के आधार पर उहाँ के जनम तिथी के केवनो जानकारी मिल सके। कहला जाला कि उहाँ के साठ साल ले जियनी। कुछ लोगन औरी परमाणन के आधार पर उहाँ के जनम सन विक्रमी संवत 1673 (सन 1616 ई) मानल जाला। ओही अ ङने उहाँ के मरन (स्वर्गवास) के तिथी विक्रमी संवत 1731 (सन 1674 ई) मानल जाला।

धरनी दास जी के जनम छपरा के मांझी गाँव में एगो वैष्णव हिन्दू कायस्थ परिवार में सतरहवीं शताब्दी के शुरुआती सालन में भईल रहल। उहाँ के बाबूजी के नाँव श्री पारसदास औरी आजा के नाँव श्री तिकैत दास रहे। उहाँ के माई के नाँव विरमा देवी रहे। उहाँ के आजा औरी बाबूजी दुनू जने बहुते धार्मिक औरी गाँव के एगो बरिआर आदमी रहनी। जब उहाँ के जनम भईल तब पंडित लो के राय रहे कि धरनीदास जी एगो धार्मिक व्यक्ति रहीहें औरी लमहर जिनगी जीहें औरी ई सभ बात बाद में सही भईली सऽ।

कहनाम


धरनीदास जी एगो गिरहथ जिनगी जीए वाली आदमी रहनी। उहाँ के माँझी के नवाब के इहाँ दीवान के काम बहुत दिन कईनी। लेकिन ई काम उहाँ खाती केवनो महता ना रखत रहे। उहाँ के मन शुरुए से जिनगी के उ सवालन कऽ ओर भागत रहे जेवना के लोग बहुत कम महता देला। उहाँ खाती ई ढेर जरूरी रहे कि उहाँ जिनगी के मतलब जान सकीं; भगवान से रिश्ता जोड़ सकीं। सभ कईला के सङही उहाँ कऽ आपन मन बात कवित्त के रुप में लिखे लगनी। एही घरी उहाँ के बाबूजी के देहांत सन 1656 ई में हो गईल। बाबूजी के मरन धरनीदास जी के भीतर ले हिला के रखि दिहलस। उहाँ के मन जेवन जिनगी के आपा-धापी में लागल औरी उचटि गईल कि ओही घरी एगो घटना घटल जेवना के वजह से मए रोक-टोक औरी नाता तुरी के उहाँ के आपन जिनगी ऊपर वाला के खोज में लगा दीहनी। ओईसे ए बात केवनो साखी नईखे औरी हो सकेला ई बात सच कम औरी उहाँ के माने वालन के भाव बेसी होखे काँहे कि अईसने घटना के कबीरदास से भी जोड़ल जाला। 

कहल जाला कि धरनीदास जी एक दिन अपनी मालिक के जमीन जायदाद कऽ कागज कऽ काम करतऽ रहनी कि अचानक उहाँ कऽ पानी गगरी उठा के कागज पर उलाटि दिहनी औरी सगरी कागज भीज गईल। ए बात से उहाँ के मालिक अनराज भईलें औरी बोला के कई बेर पूछलें तऽ उहाँअ के बतवनी कि भगवान जगन्नाथ के कपड़ा में आरती करत में आगि लागि गईल रहल तऽ ओके बुतावे खाती पानी डलुवीं। ई सुनि के उहाँ के मालिक हँसे लगलन। ई देखि के धरनीदास जी अनराज हो के सभ काम छोड़-छाड़ के चलि दिहनी। ई देखि के नवाब के मन में ई बात आईल कि काँहे ना ए बात के जाँचि लिहल जाओ औरी एकरा खाती दूगो आदमी जगन्नाथ धाम भेजल गईल जहाँ ए बात के सच पावल गईल औरी उहाँ के पुजारिन के हिसाब से धरनीदास नियर लऊके वाला आदमी भगवान जगन्नाथ के कपड़ा के आगि ओही दिने बुतवलें। ई बात जानला के बाद नवाब कऽ मन में डर समा गईल कि कहीं धरनीदास सराप मत दे देस। ए खाती उहाँ से छमा माँगि के काम पर लवटे खाती कहे लगलन मगर धरनीदास जी मना कऽ दिहनी औरी के एगो मड़ई में एगो साधु नियर रहे लगनी औरी एगो गुरु खोजे लगनी। 

एही घरी उहाँ के भेंट चन्द्रदास नाँव के एगो साधु से भईल जे उहाँ के संयासी जीवन के दीक्षा दिहल औरी सेवानंद जी नाँव एगो दोसर साधु के आपन गुरु मान के साधना शुरु कऽ दिहनी। लेकिन अबो उहाँ के मन में शान्ति ना रहे औरी अभीओ उहाँ के ओ आदमी कऽ खोज करत रहनी जे उहाँ के आत्मा के शान्ति दीयवावे के रास्ता देखा सके। तवने घरी उहाँ के मुज़फ़्फ़रपुर के स्वामी रामानंद जी कऽ शिष्य परम्परा के विनोदानंद जी क नाँव सुननी औरी उहाँ से मिले चलि दिहनी। कहल जाला कि ई जाने खाती कि विनोदानंद जी सही गुरू होखी कि ना एकरा खाती धरनीदास जी एगो सांप के रुप धऽ के ओ चउकी से लपेटा गईलें जेवना पर विनोदानंद जी बइठ के रोज परवचन देस। विनोदानंद जी रोज नियर परवचन दिहनि औरी जब खाना खाए के बेरा भईल तऽ उहाँ के रसोईया से कहनी, 
“एगो औरी मेहमान बाड़े। जा! उनकरी खाती खाना ले आवऽ।”
ई कहि के विनोदानंद जी साँप बनल धरनीदास जी से कहनी,
“भाई आवऽ, खाना खा लऽ। काहे खाती चउकी पाया ले लपेटाइल बाड़ऽ?”

एतना सुनला के बाद धरनीदास जी अपनी असली रुप में आ के विनोदानंद जी के गोड़ धऽ के शरन में लेबे खाती कहे लगनी औरी विनोदानंद जी उहाँ के आपन चेला बना लिहनी।

ई सभ कहानी केता साँच बाड़ी सऽ एकर केवनो परमान नईखे। हो सकेला जेङने बड़ आदमी के संगे ढेर खानी कहल-सुनल बातो के जोड़ि दिहल जाला ओही तरे ए कई सौ साल के घरी ई सभ कहानी भी जोड़ दिहल गईल होखस। लेकिन धरनीदास जी अपनी कवित्त में अपनी गुरू विनोदानंद जी के बेर-बेर नाँव लेले बानी। एसे ई बात तऽ तै बा कि विनोदानंद जी उहां के गुरु रहल बानी।

एही तरे कहल जाला कि एक दिन धरनीदास जी के मड़ई में कुछ साधु आईल लो औरी खाना के बेवस्था करे के कहल लो। जब खाना बनि के तइयार हो गईल तऽ कहे लागल लो,

“तोहार जाति तऽ कायस्थ के हऽ औरी तू द्वारिका जाके अपना के भगवान कृष्ण के छापा ले के शुद्ध नईख भईल। हमनी के तोहर दिहल खाना कईसे भगवान के भोग चढाईं जा?”

धरनीदास जी कई बेर हाथ जोर के भोग लगावे खाती निहोरा कईनी औरी जब बात ना बनल तऽ कहनी,

‘ठीक बा। रऊआँ सभ थोरकी भर समय देईं। हम आवत बानी।”

ई कहि के धरनीदास जी अपनी मड़ई में चलि गईनी औरी थोरी देर बाद आ के भगवान के छापा देखा दिहनी। ई देखि के सगरी साधु लो उहाँ के गोड़ धऽ लिहल लो।
कहल जाला कि जब उहाँ अंतिम समय आइल तऽ उहाँ के अपनी सगरी माने वालन से विदा के ले गंगा औरी सरजू के संगम पर पानी पर आपन गमछा बिछा के बईठ गईनी औरी साधना में लीन हो गईनी। थोरही समय में उहाँ क देहिं पानी पर बहत लऊकल औरी थोरही देर में अपने मने पानी में आगि लाग लगईल औरी धरनीदास के सरीर आँखी से अन्हँ हो गईल। 

जाने केतने काथा-कहानी जुड़ल बाड़ी सऽ संत धरनीदास जी से औरी ई कहल मुश्किल बा कि का साँच बा औरी का झुठ काँहे कि जेवन चीझ से आस्था औरी भक्ति जुड़ जाला ओइजग तरक केवनो काम के ना होला। 

साहित्यिक जतरा


संत धरनीदास जी एगो गिरहथ संयासी रहल बानी जे बाद में सभ कुछ छोड़-छाड़ के संयासी साधु बनि गईल बानी। इहाँ कऽ ए देस के बरिआर औरी जियतार निरगुन परम्परा के आगे बढ़ावे में बहुते बड़हन जोगदान बा। इहाँ के भोजपुरी औरी अवधी में आपन कवित्त लिखले बानी। उहाँ साखी, सबद, दोहा औरी पद जईसन छंद में रचना कईले बानी। उहाँ का केतना औरी कऽ गो किताब लिखले बानी ई कहल मुश्किल बा लेकिन ए बेरा जेवन मिलत बा ओकरा आधार पर उहाँ के नीत गो रचना महता वाली बाड़ी सऽ। उन्हनी के नाँव बा:

  1. शब्द प्रकाश
  2. रत्नावली
  3. प्रेम प्रकाश

‘शब्द प्रकाश’ में उहाँ के भोजपुरी में गेय पद रचले बानी। ‘रत्नावली’ में गुरु-शिष्य परम्परा के कुछ दोसर संतन के बारे में बहुत कुछ कहले बानी औरी ‘प्रेम प्रकाश’ में भगवान से अपनी परेम बखान कईले बानी औरी एकरा खाती सूफी संप्रदाय शैली के परियोग कईले बानी। इहाँ का अपनी रचना में भाव, भजन, परेम औरी खुद के ना माने पर जोर देले बानी। सङही इहाँ के दोसर संतन के भी बहुते महता देले बानी। इहाँ के बहुत बरिआर योगाभ्यासी रहल बानी औरी ई उहाँ के बानी में लऊके ला।

संदर्भ सूची :-

  1. सम्पादक, 1911,धरनीदास जी की बानी, वेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद 
  2. सम्पादक, संत-महात्माओं का जीवन चरित्र संग्रह, वेलवेडियर प्रेस, इलाहाबाद 
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लेखक परिचय:-



पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश

लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र

संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in

दूरभाष संख्या: 7503628659

ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/

फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens
अंक - 25 (28 अप्रैल 2015)
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