गरीब के बेटी - मृत्युंजय अश्रुज

परस्तुत कबिता "गरीब के बेटी" समाज में फइलऽल ओ कुरीति पर  बे जेवना के परिणाम के देखा रहल बा ,जेवन रोज हमनी के आस पास घटत बा। बेटी के बाप भईल केतना मरदाही औरी कस्ट देबे वाला बा ओकर बरनन ए कबिता में साफ-साफ भईल बा। ए कबिता में कइसे एगो बाप रोज-रोज बेटी के बिआह खाती लईका देखे जाता औरी पईसा रुपिया के कमी के कारन रोज-रोज मन मार के लवटे परता। रोज-रोज के तिरस्कार से दुखी हो के उदास हो गईल बा औरी बेटी बाप के उदासी देख नईखे पावत। ऊ माने लागल बे के ओकरा बिआह के ले के परेसान बा बाड़े बाबा। उनकरा खाती ऊ बोझा हो गईल बे औरी बढिया रही के बोझा उतार देव औरी जहर खा लेते। उ बाप जेवना के नाक रहत बे बेटी, कोहिनूर मानऽ ता ओकर लास देख खुदे मर जाता। ए कबिता में कबि बाप बेटी के मीठ नाता के देखावत बा। उ देखावत बा कि केतना धियाअन देले एगो बेटी अपना बाप के तऽ बाप के जान कइसे बेटी में बसेला। इहे बात ए कबिता के जान बे। कहीं-कहीं कबिता कमजोर परऽ जाते लेकिन उ केवनो बड़ बात नईखे।
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काहे बैठल बाड़s मनवा मार बाबा
देखके कूहूकेला मनवा हमार बाबा। 
भैल बा कवना बात के दुख 
देहिआ पलपल जाला सूख। 
देखी ले जब तोहके उदास 
उठेला हूक जीआ का पास।
कैसे बांटी हम दुखवा तोहार बाबा। देखके...... 

जालs केहके कहवां खोजे 
कवन काम बा अइसन रोजे।
जालs रोज सबेरे तनके 
लौटs मुर्दा अइसन बनके। 
अब तूंही बाड़s तिनका आधार बाबा ।देखके...... 

जब हमही तू दु संघतिआ 
काहे छुपावेलs मन के बतिया।
आपन दुखवा दs भुलाई 
तोहार कली गईली फुलाई।
मिटल जिनगी से तोहरा अन्हार बाबा ।देखके...... 

सुन के बेटी के बचन
भर आइल बाबा के नयन। 
रोकके मुश्किल से रोआई 
कहले बबुनी के अंक लगाई। 
भैलू जहिया कली से फूल 
गईनी भूख पिआ हम भूल। 
कैसे करी पिअर तोहर हाथ 
सतावे इहे चिंता दिन-रात।
दर दर एही ला भटके तोहार बाबा ।देखके...... 

जाने कहां कहां ना गैनी 
रो रो दुखड़ा सब सुनवनी। 
बेटी रूप गुण के भंडार 
बस एतने पूंजी हमार। 
लेलs 'कोहीनूर' के दान 
पुन होई तोहरा महान। 
करदs बेटी से उद्धार 
धो धो पीअय चरण तोहार। 
देहलस लोरवा से गोरवा पखार बाबा 
ना पवलें कहीं आशा के दुआर बाबा। देखके...... 

चिंता करेलs झूठीमूठी 
डोली ना त रंथी उठी।
जो ना पेन्हब चुनर लाल
ना रूकी दुनिया के चाल। 
अब कहीं मत जा रहब हम कुंआर बाबा। देखके...... 

कइसे छोड़ी कुंआर तोहका 
दुनिया देवे लागी टोहका। 
मर गईल एकरा आंख के पानी 
ल उके ना बेटी के चढ़ल जवानी। 
ताना कैसे सही बबुनी तोहार बाबा 
दर दर एहीला भटके तोहार बाबा।देखके...... 

रात के बाबा के खिआ के 
बबुनी सोचली पीछे आगे। 
जबतक रहब हम जिंदा 
ना मिटी बाबा के चिंता। 
ना होई सोना चांदी के ढेर 
कि लगायेब अगनी के फेर। 
होके सब ओर से उदास 
बबुनी झट खइली सल्फास। 
बिदा होत बारी बबुनी तोहार बाबा। देखके...... 

देखलें जब बेटी के लाश 
टूटे लागल बाबा के सांस। 
कहले हाथ ऊपर उठाई 
सुन रे भगवन तू हरजाई। 
जेकरा हो सोना चांदी के खेती 
दीहs ओकरे घर तू बेटी बेटी। 
गरीब घरे जो आई 
होई मौते संग सगाई। 
आवत बाटे बबुनी तोहार बाबा 
देखके कूहूकेला बबुनी तोहार बाबा।
-----------मृत्युंजय अश्रुज
अंक - 21 (31 मार्च 2015)

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