चारु ओर पावन परब छठ के निर्मलता लउकत बा। गाँव-देहात, देश-दुनिया, राजनीति-मनोरंजन, चारु ओर छठ व्रत पर अपना-अपना ढंग छटा लउकत बा। एकरा सथवे अपना सभ्यता-संस्कारन के छटा लउकत बा। सभे छठ मैया के शरण में जा के मन के तृप्त करे के गोहार लगावत बा। लोग-संस्कृति में देवी-देवता से लेऽ केऽ प्रकृति लेऽ पूजा-उपासना के परब-त्योहार ले त बड़ले बा बाकिर थाती के रूप में छठ प्रस्तुत बा आज। लोक-जीवन के ओही पर्वन में सूर्योपासना खातिर छठ के एगो अलगे महत्त्व हऽ। छठ व्रत सूर्य षठी के होला जवना कारने एहके नाम छठ पड़ गइल। वैसे तऽ ईऽ पर्व साल में दू बेर मनावल जाला बाकिर कातिक अँजोर के छठी पर मनावे जाए वाला ईऽ छठ सबसे प्रसिद्ध आ लोकप्रिय हऽ। परिवार के सुख-समृद्धि आ अनेक मनौतीअन के फल प्राप्ति खातिर ई पर्व मनावल जाला। ई पर्व मरद-मेहरारू सभे एक्के लखां मनावे ला। ई एको पहिलका पर्व ह जवना में उगत सुरुज के पहिले डूबतो सुरुज के आराधना होला। अरघ दिआला।
छठ व्रत के बारे में ई कहल जाला कि लोक माई छठ के पहिलका पूजा सूरजे भगवान कइले रहले। अगर विज्ञान के आँख से देखल जाव तऽ एह छठ पर्व के परंपरा में बहुत विज्ञान बा। खगोल विज्ञान के मानी तऽ षष्ठी तिथि अपने आपे में एगो विशेष खगोलीय अवसर हऽ। ओह दिन सूर्यदेव के पराबैगनी किरीन धरती के तल पर कुछ अधिक मात्रा में जमा हो जाले। इहो कहल जाला कि परब के पालन से सूरूज के पराबैगनी किरणन के हानिकारक प्रभाव से जीव-जंतुअन के रक्षा संभव बा। सूरूज के किरीन धरती पर पहुँचला से पहिले वायुमंडल में प्रवेश करे से पहिले आयन मंडल से मिलेले। ऊँहवे पराबैगनी किरीन के उपयोग कऽ केऽ वायुमंडल अपना ऑक्सीजन तत्त्वन के संश्लेषित कऽ के ओकरा एलोट्रोप ओजोन में बदल देला। तब धरती पर एकर असर कम हो जाला। ज्योतिष के गिनती के अनुसार ईऽ घटना कार्तिक आ चइत मास के अमावसा के छह दिन बाद पड़ेला। अगर सामाजिक व्यवस्था के आँख से देखल जाव त लोक-जीवन में अधिकतर लोग खेतीए करेला आ छठ व्रत-पूजा में सगरो सामान खेतीए के होला। छठ में लागे वाला कोशी, परवा, दीया कोहार बनावेले। कोहार भाई माटी से बनावेले। माटी के परिपाटी त खेती-किसानी से जुड़ले बा। एह तरे अगर छठ के लोक-जीवन से जोड़े वाला व्रत कहल जाव त कहीं से एक्को रत्ती झूठ ना होई।
ई त छठ में आस्था राखे वाला सभे जानते बा कि कार्तिक शुक्ल के छठी के दिने मनावल जाये वाला ईऽ पर्व हर तरह से एगो पवित्र पर्व हऽ। छठ माई के ई पावन व्रत भगवान भाष्कर के व्रत हऽ। भगवान भाष्करे के अरघा देहला के बाद व्रती लोग पारन करेला लोग। छठ व्रत के विधि का हऽ, ओकर सगरो विधान पूजा करत, तैयार करत के अवसर पर गावे वाला गीतन में सोंझहे लउके ला। सँचको बात ईहे हऽ कि लोक-उत्सवन के असली उमंग तऽ ओह अवसरन पर गाए जाए वाला गीतवन के विविध रंग से ही फूटेला। अदितमल से अरज करत औरत जब अपना दयनीय दशा के वर्णन करेली तऽ सुनहूँ वाला के करेजा पसीजे लागेला। एगो गीत रउरो देखीं ना, -
छठ व्रत के बारे में ई कहल जाला कि लोक माई छठ के पहिलका पूजा सूरजे भगवान कइले रहले। अगर विज्ञान के आँख से देखल जाव तऽ एह छठ पर्व के परंपरा में बहुत विज्ञान बा। खगोल विज्ञान के मानी तऽ षष्ठी तिथि अपने आपे में एगो विशेष खगोलीय अवसर हऽ। ओह दिन सूर्यदेव के पराबैगनी किरीन धरती के तल पर कुछ अधिक मात्रा में जमा हो जाले। इहो कहल जाला कि परब के पालन से सूरूज के पराबैगनी किरणन के हानिकारक प्रभाव से जीव-जंतुअन के रक्षा संभव बा। सूरूज के किरीन धरती पर पहुँचला से पहिले वायुमंडल में प्रवेश करे से पहिले आयन मंडल से मिलेले। ऊँहवे पराबैगनी किरीन के उपयोग कऽ केऽ वायुमंडल अपना ऑक्सीजन तत्त्वन के संश्लेषित कऽ के ओकरा एलोट्रोप ओजोन में बदल देला। तब धरती पर एकर असर कम हो जाला। ज्योतिष के गिनती के अनुसार ईऽ घटना कार्तिक आ चइत मास के अमावसा के छह दिन बाद पड़ेला। अगर सामाजिक व्यवस्था के आँख से देखल जाव त लोक-जीवन में अधिकतर लोग खेतीए करेला आ छठ व्रत-पूजा में सगरो सामान खेतीए के होला। छठ में लागे वाला कोशी, परवा, दीया कोहार बनावेले। कोहार भाई माटी से बनावेले। माटी के परिपाटी त खेती-किसानी से जुड़ले बा। एह तरे अगर छठ के लोक-जीवन से जोड़े वाला व्रत कहल जाव त कहीं से एक्को रत्ती झूठ ना होई।
ई त छठ में आस्था राखे वाला सभे जानते बा कि कार्तिक शुक्ल के छठी के दिने मनावल जाये वाला ईऽ पर्व हर तरह से एगो पवित्र पर्व हऽ। छठ माई के ई पावन व्रत भगवान भाष्कर के व्रत हऽ। भगवान भाष्करे के अरघा देहला के बाद व्रती लोग पारन करेला लोग। छठ व्रत के विधि का हऽ, ओकर सगरो विधान पूजा करत, तैयार करत के अवसर पर गावे वाला गीतन में सोंझहे लउके ला। सँचको बात ईहे हऽ कि लोक-उत्सवन के असली उमंग तऽ ओह अवसरन पर गाए जाए वाला गीतवन के विविध रंग से ही फूटेला। अदितमल से अरज करत औरत जब अपना दयनीय दशा के वर्णन करेली तऽ सुनहूँ वाला के करेजा पसीजे लागेला। एगो गीत रउरो देखीं ना, -
काल्ह के भुखले तिरियवा
अरघ लिहले ठाढ़ऽ।
हाली-हाली उग ये अदितमल,
अरघा जल्दी दियावऽ।।
छठ व्रत में पारना के एक दिन पहिले वाला साँझ के बेरा डुबत अदितमल के, आ ओह दिन उगत अदितमल के, व्रती अरघा अर्पित करेला लोग। सूर्य देव के अरघा देबे के प्रक्रिया नदी, पोखरा आ तालाबन के किनारे पूरा कइल जाला। छठ के गीतन में गंगा जी के स्वच्छ आ झिलमिल जल के वर्णन मिलेला। एगो चित्र देखीं। देखीं ना, एगो भक्त परिवार छठ माई के पूजा करे नाव से घाट पर जाता। गंगा जी के झिलमिल पानी से चित्र और निखर जाता -अरघ लिहले ठाढ़ऽ।
हाली-हाली उग ये अदितमल,
अरघा जल्दी दियावऽ।।
गंगा जी के झिलमिल पनीया
नइया खेवे ला मल्लाह,
ताही नइया आवेले कवन बाबू
ये कवना देई के साथ।
गोदिया में आवेलें कवन पूत
ये छठी मइया के घाट।।
लोक-जीवन के एह महान उत्सव में ढेर सामानन के व्यवस्था करे के परेला। लोक-व्यवस्था के ई समरसता देखीं कि छठ पूजा में लागे वाला सगरो सामान प्रकृतिए के गोद से मिलेला। या तऽ ऊऽ सब प्रकृति देवी देली आ नाहीं तऽ कृषि आधारित होला। कहीं से केरा, कहीं से नेबुआ, कहीं से दही, सेब, सिंघाड़ा, ऊँख, हरदी, आदी, कोंहड़ा, चिउरा, ओल, मुरई, सुथनी। ईऽ सगरो सामान आस-पड़ोस, सगा-संबंधी से मिल जाला। छठ के गीतन में तऽ ईहो वर्णन मिलेला कि घरे आवे वाला हीतो-नात अरघा के सामान जुटावेला लोग। देखीं नाऽ, -नइया खेवे ला मल्लाह,
ताही नइया आवेले कवन बाबू
ये कवना देई के साथ।
गोदिया में आवेलें कवन पूत
ये छठी मइया के घाट।।
कवन देई के अइले जुड़वा पाहुन,
केरा-नारियर अरघर लिहले।
भोजपुरी लोक-जीवन के लोकमन ईहाँ के मटिए जइसन उर्वर बाऽ। जेऽ तरे लोग के पावन मन में अनगिनत लालसा के जनम होला, ठीक ओही तरे भारत के माटी पर भी किसिम-किसिम के फल-फूलन के ऊपज होला। भारत के धरती अनगिनत फल-फूल, धन-धान्य से भरल धरती हऽ। ई रतनन से भरल वसुन्धरा माई हमनी के सबकुछ दे देलीऽ। हर तरह से संपन्न करेली। हमनी के सुख-दुख, हँसी-खुशी, उछाह-उमंग, सबके ध्यान राखेली। शहर के गति से पिछुआइल हमनी के गाँवन में कातिके-अगहन नाऽ, सालो भर मौसम के अनुसार फल-फूल, साग-सब्जी के मनमौजी लता-लड़ी बेसुध होके घरन के छत-छान्ह पर पसरल रहेली आ अपना उन्मादल हरिहरी से मानव-मन के आकर्शित करत रहेली। कवनो गाँव में चलऽ जाईं, हर जगह लौकी, कोंहड़ा, घेंवड़ा, तिरोई आ चाहें नेबूआ, केरा, हरदी, ओल, कोन, सुथनी के आकर्षण लउके ला। सगरो मोहबे करेला, - केरा-नारियर अरघर लिहले।
केेरवा जे फरेला घवद से,
ओहपर सुगा मेरड़ाय,
सुगवा के मरबो धनुष से,
सुगा गिरे मुरछाय।
लोक जीवन! माने सहजता के जीवन। एह सहजता में अपनत्व बाऽ, प्रेम बाऽ आ अमरख बाऽ। व्रत-त्योहारन के अवसर पर गावे जाए वाला गीतीयनो में लोक-जीवन के आषीश, प्रेम, अपनत्व, सहयोग, समरसता के सथवे अमरख आ बैरो के स्वरूप मिल जाला। सथवे लोक-जीवन में अनंत आस्था के विस्तार बा त शीतल मलय के लहार नीयर विश्वास बा। छठ के कारने बैर बिला जाला, नेह समा जाला। टूटल मन के जोड़त छठ व्रत अपना पावनता से सबके आपन बनावे लागेला। अपनइत के ओह संसार में बाउर नजरी के डरो लउकेला, -ओहपर सुगा मेरड़ाय,
सुगवा के मरबो धनुष से,
सुगा गिरे मुरछाय।
काँच ही बाँस के बहँगिया
बहँगी लचकत जाय।
बाट जे पूछेला बटोहिया
ई बहँगी केकरा घरे जाय?
आँख तोर फूटो रे बटोहिया
ई बहँगी कवन बाबू के घरे जाय।।
आज के बेगवान समाज के बौद्धिक स्तर भले ऊँच होऽ ताऽ, बाकिर आज के जन मानस में बेटा-बेटी के प्रति सोच बदलत लउकता। आज के समय में खाली सुहाग के जोड़ा, बाँह में चूड़ी, माँग में सेनूर लगवले में नारी के नारीत्व पूरा ना होला। पहिले तऽ बेटा खातिर औरत लोग कवनो उद्यम करे खातिर तैयार रहत रहे लोग, आज बेटा-बेटी में भेद के सोंच बदलल बा। ई सोच औरते लोग के कारन बदलल बाऽ। सचहूँ औरत लोग अदम्य साहस के अक्षय-कोष हऽ लोग। एक औरत के चित्रण देखीं जवन संतति खातिर छठ मइया के रास्ता रोक लेत बाड़ी, - बहँगी लचकत जाय।
बाट जे पूछेला बटोहिया
ई बहँगी केकरा घरे जाय?
आँख तोर फूटो रे बटोहिया
ई बहँगी कवन बाबू के घरे जाय।।
छठी मइया चलेली नहाये
बाझीन रोकेली बाट,
कवन अयगुनवा हमसे हो गइले
बाझीन पडि़ गइले नाम?
भले आज अत्याधुनिक सभ्यता आ श्रेष्ठ शिक्षा के चमत्कार के कारन अपना प्राचीन धारणा आ विश्वासन में वैज्ञानिक आ तार्किक परिवर्तन भइल बाऽ, बाकिर भोजपुरी के लोक-जीवन में संस्कृति के कलकल करत नदी के धारा आजुओ अपना पहिलके गति से बह रहल बाऽ। लोग आजुओ ओही तरे छठ के व्रत राखता आ अपना मन के कामना के पूरा होखे खातिर छठ माई के विधिवत पूजा-व्रत राखत बा लोग। एही कारने देश में रोज राजनैतिक, सामाजिक आ आर्थिक व्यवस्था के साथे धार्मिक परिवर्तन होऽ ता तऽ काऽ, आजुओ छठ मइया के प्रति आस्था बढ़ते बुझाता। आज लोक-गायिका शारदा सिन्हा के नवका गीत सुनत रहनी ह। मन कसैला हो गइल ह। चार भाई, समृद्ध आ बुद्धिजीवी कुनबा। बाकिर सभे दूर-दूर। केहू ईर घाटे, केहू बीर घाटे। कतहूँ बा बाकिर सभे सबसे पूछ-पूछ के तैयारी में लागल बा। छठ माई के कारने सम्बन्ध के राग बढ़ रहल बा। अत्याधुनिक शहर में रहला के बादो मन लोक-जीवन के प्रति नत बा। छठ माई के प्रति नत बा। बाझीन रोकेली बाट,
कवन अयगुनवा हमसे हो गइले
बाझीन पडि़ गइले नाम?
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लेखक परिचय:-
नाम - केशव मोहन पाण्डेय2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन।
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख
दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित।
नाटक लेखन आ प्रस्तुति।
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित।
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण
टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन
अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना.
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन.
संपर्क –
पता- तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र.
kmpandey76@gmail.com
अंक - 105 (08 नवम्बर 2016)
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