चल सखी ! चल धोए मनवा के मइली।
कथी के देहिया, कथी के घइली। कवने घाट पर सउनन भइली।।
चित्रकार रेहिया, सुरतकर घइली। त्रिकुट घाट पर सउनन भइली।।
ग्यान के सबद से काया धोअल गइली। सहजे कपड़ा सफेद हो गइली।।
कपड़ा पहिरि लछिमी सखी आनंद भइली। धोबी घरे भेज देहली नेवत कसइली।।
कथी के देहिया, कथी के घइली। कवने घाट पर सउनन भइली।।
चित्रकार रेहिया, सुरतकर घइली। त्रिकुट घाट पर सउनन भइली।।
ग्यान के सबद से काया धोअल गइली। सहजे कपड़ा सफेद हो गइली।।
कपड़ा पहिरि लछिमी सखी आनंद भइली। धोबी घरे भेज देहली नेवत कसइली।।
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लेखक परिचय:-
नाम: लछमी सखी
काल: 1841-1914
जनम: अमनौर, सारन, बिहार
सखी सम्प्रदाय के संत
अंक - 95 (30 अगस्त 2016)
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