जे फूल से घाही हो ओपर, पत्थर बरिसावल ठीक ना ह।
मन सबके हऽ परभु के मन्दिर, मन्दिर भहरावल ठीक ना ह।
ई जिनिगी हऽ, ए जिनिगी में, कुछ मान मिली, अपमान मिली,
अपमान-मान के चक्कर में, माँथा चकरावल ठीक ना ह।
बेरा अइले नवका- नवका, फल- फूल डाढ़ि पर लगि जाला,
सगरे बा सोरि की किरिपा से, सोरी के सुखावल ठीक ना ह।
धन, धरती, महल, रसूख, रूप, सुख- सम्पति सब चरिदिना हऽ,
ए चारि दिनन की चलती में, अदिमी के सतावल ठीक ना ह।
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मन सबके हऽ परभु के मन्दिर, मन्दिर भहरावल ठीक ना ह।
ई जिनिगी हऽ, ए जिनिगी में, कुछ मान मिली, अपमान मिली,
अपमान-मान के चक्कर में, माँथा चकरावल ठीक ना ह।
बेरा अइले नवका- नवका, फल- फूल डाढ़ि पर लगि जाला,
सगरे बा सोरि की किरिपा से, सोरी के सुखावल ठीक ना ह।
धन, धरती, महल, रसूख, रूप, सुख- सम्पति सब चरिदिना हऽ,
ए चारि दिनन की चलती में, अदिमी के सतावल ठीक ना ह।
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लेखक परिचय:-
नाम: सुभाष पाण्डेय
ग्राम-पोस्ट - मुसहरी
जिला-- गोपालगंज बिहार
ग्राम-पोस्ट - मुसहरी
जिला-- गोपालगंज बिहार
अंक - 89 (19 जुलाई 2016)
बहुत सुन्दर काव्य। बधाई।
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