बहुत भइल बेपर कs केशव,
कहs गाँव कs घर कs केशव!
ईंटा कs जंगल में हम तs
शहर जी रहल बानीं,
कंकड़-पत्थर नाता-रिश्ता
आपन इहे कहानी,
बाग बगइचा ताल नहर कs
कहs खेत पोखर कs केशव!
सँइचल आग गँवा के आपन
सपना जोड़त बानीं,
नून मिलल पानी में निबुआ
रोज निचोड़त बानीं,
लैनू माठा मीठ किकोरी
दूध दही सिकहर कs केशव!
पुतरी में आकाश उतारल
भूलि गइल अब मन ई,
धार संग हँस बहत रहे
अब थिर लागे जीवन ई,
पानी कs ऊ अकथ कहानी
नदिआ नाव लहर कs केशव!
रोज बिछावत रोज चपोतत
मन अब फाट गइल बा,
शहरी नेत नियाव नीत
सइ टुक में बाँट गइल बा,
जुम्मन अलगू बुधिया होरी
धनिया आ गोबर कs केशव!
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अंक - 83 (7 जून 2016)
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