छल - केशव मोहन पाण्डेय


नाव त रहे जगरनिया 

बाकिर काटत बिपत जिनगी के 
जोहत बहाना बरतन माजे के 
फूंके के बेहया के बास वाला चूल्ह 
जिनगी धुँआ हो गइल
एने-ओने उधियात
कातिक के भुआ हो गइल।
बाबूजी के दिहल नाव
तब ईयाद आइल
जब टँकाए लागल
सरकारी कागद में
तब हँसलस सपना
कींचर में दबल
आखियाँ के कोर में
कि हमरो घरे
आई डाक से नोट
बूढ़ा-पिन्सिन के।
नाचे लागल मन
कि हाथ पर हमरो
आई दू पइसा
सार्थक हो जाई
बाबूजी के दिहल नाव
भर जाई
जिनगी भर के सगरो घाव।
हुलास मारे लागल
चेखुर नियर
झोंटा में लुकाइल
रेखा ललाट के
कि अब ना बुझावे के पड़ी 
पियास
सीत चाट के।
लोकतंत्र के कारन
गउँवों में चुनाव आ गइल
एक बेर फेरु सामने
जगरनिया नाव आ गइल
बूढ़ा-पिन्सिन बढ़े वाला बा
वादा चुनाव के रहे
टल गइल
एक बेर फेरु
जगरनिया के साथे
पहिलहीं नियर छल भइल।
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लेखक परिचय:-


2002 से एगो साहित्यिक संस्था ‘संवाद’ के संचालन। 
अनेक पत्र-पत्रिकन में तीन सौ से अधिका लेख, 
दर्जनो कहानी, आ अनेके कविता प्रकाशित। 
नाटक लेखन आ प्रस्तुति। 
भोजपुरी कहानी-संग्रह 'कठकरेज' प्रकाशित। 
आकाशवाणी गोरखपुर से कईगो कहानियन के प्रसारण, 
टेली फिल्म औलाद समेत भोजपुरी फिलिम ‘कब आई डोलिया कहार’ के लेखन 
अनेके अलबमन ला हिंदी, भोजपुरी गीत रचना. 
साल 2002 से दिल्ली में शिक्षण आ स्वतंत्र लेखन. 
संपर्क – 
तमकुही रोड, सेवरही, कुशीनगर, उ. प्र. 
kmpandey76@gmail.com

अंक - 44 (8 सितम्बर 2015)

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