सम्पादकीय: अंक - 77 (26 अप्रैल 2016)

पानी कऽ बवाल

लातूर अउरी बुँदेलखण्ड में पानी खाती हाहाकार मचल बा अउरी इहो कहल जा रहल बा ऊ दिन दूर नइखे जब सगरी भारत के इहे हाल होई। एही बीच में सरकार पर आरोप प्रत्यरोप के सिलसिला लागल बा बाकिर एह सगरी बातचीत में ओह कारन पर केहू बात करे नइखे चाहत काँहे कि ई सभ बातन में केवनो रस नइखे लउकत। जदि लातूर के इतिहास पर धेयान दिहल जाओ तऽ ई साफ लउकत बा कि लातूर अउरी आसपास कऽ मराठवाड़ा कऽ इलाका दसकन से पानी खातिर परेसान बा अउरी ई हर साल कऽ दिक्कत बा। सभसे बेसी हरान करे वाला बात ई बा कि जेवन इलाका दसकन से पानी के कमी झेल रहल बा ओह इलाका में पानी के बचावे खातिर केवनो बरिआर परियास ना भइल बलुक उलटे ना जाने केवना कारन से पानी पिये वाली ऊँख के खेती जरूर जोर पकड़ि लिहलस। जेवन समाज अपना आज अउरी काल्ह के ले के हेतना गैर जिम्मेवार हो सकेला ओह समाज में पानी भा केवनो प्राकृतिक संसाधन के कमी केवनो हरानी के बात नइखे अउरी होखहूँ के ना चाहीं। हरमेसा मानवाधिकार अउरी मानवता के नाम पर केवनो समाज के निठल्ला बना दिहल काहाँ के ठीक बा? कब्बो ना कब्बो जबावदेही तय तऽ करहीं के परी। इहे हाल बुंदेलखण्ड के बा। कुछ दसक पहिले ले पानी खाती हेतना मारि ना होत रहल एक इलाका में बाकिर आज पानी खाती गोली चलि रहल बा। 
आज जरूरी बा कि हमनी के एगो राष्ट्र के रुप में अपने आप से कुछ जरुरी सवाल पूछीं जा अउरी आपन प्राथमिकता तय करीं जा। जिनगी के एह मोड़ पर खड़ा हो के आज ले के सफर पर लवटि के एक नजर डालि लिहला के काम बा। जरूरी बा कि हमनी के बिकास के जेवन मॉडल अपनवले बानी जा ओकर गहिराह समीक्षा कऽ लिहल जाओ। एक हो सके तऽ अपनी आस-पास देखि लिहल जाओ कि का जेवन हमनी करत बानी ऊ सही में ठीक बा अउरी हमनी के आवे आली पीढ़ी खाती का छोड़ि के जाइब जा? 
केवनो समाज के बिकास कब्बो अपना अतीत अउरी बरतमान से काटि के ना कइल जा सकेला। ओकरा भीतर हीनता के भाव बढा के ना कइल जा सकेला। बिकास करे खाती सभसे जरूरी बा कि ऊ अपना के ले के सकारात्मक सोच राखो अउरी ऊ जेवनो तरीका अपनाओ ऊ ओकरा देस-काल अउरी परिस्थिति के हिसाब से होखो। 
भारत के बिकास जतरा पर नजर डालला पर ई साफ-साफ लउकेला कि बिकास तऽ भइल बा बाकिर एकत कीमत लागल बा लोगन के भीतर अपना बारे में नकारात्मक भावन के बढावा अउरी अपना अतीत, बरतमान अउरी देस से कटाव। बिकास के एह दउड़ में प्रगतिशीलता के नाँव पर ओ हर चीझ के छोड़ि दिहल गइल बा जेवन कहीं से तनीको पारम्परिक होखे। खान-पान-पहिराव से ले के घर दुआर हर चीझ जेवन ओके ओकरा अतीत से जोड़त रहल हऽ ओ हर चीझ बिकास नांव पर खतम हो रहल बा। जब कि पुरान खान-पान-पहिराव, घर-दुआर, नदी-नाला-पोखर, खेती-बारी अउरी जिए के ढंग एह देस के भूगोल अउरी जलवायु के हिसाब से बनावल गइल रहल बाकिर बिना सोच बिचार के सभ छोड़ि दिहल गइल। 
अइसन नइखे कि पुरान चीझन के छोड़े के ना चाहीं। ई जरूरी बा कि ओअ हर चीझ के, चाहे परम्परा होखे भा गियान-विगियान होखे, बेकार हो गइला पर छोड़ि के नाया चीझन के धऽ लिहल जाओ ताकि बरतमान के चुनउतीन के ढंग से सामना कइल जा सके बाकिर पुरान के छोड़े अउरी नाया के अपनावे के बेरा ई बिचार कइल बहुत जरूरी बा कि जेवना जे छोड़ि के नवका के अपनावत बानी का ऊ एह देस, काल अउरी परिस्थिति के हिसाब से ठीक रही? इहे काम भारत ना कइलस जब ई बिकास के नवका मॉडल अपनावत रहे अउरी प्रगतिसीलता के नाँव पर कब्बो एह मॉडल के समीक्षा तक ले ना क्इलस।
भारत मूलतः एगो गरम देस ह जेवना कम से कम 9 महीना ठीक-ठाक गरमी पडेला अउरी छव महीना तऽ खुब जमि के गरमी पड़ेला। तऽ ई जरूरी बा कि घर दुआर एह मुताबिक बनावल जाओ बाकिर प्रगतिसीलता के फेरा में परी का गांव, का सहर हर जगह सीसा कऽ महल खड़ा कऽ दिहल गइल अउरी ठण्डा राखे खाती पंखा, कूलर अउरी एसी लगा दिहल गइल जेवन आखिर में जलवायु अउरी मौसम खाती जहर बा। ओही तरे सादा रोटी-भात छोड़ि के ब्रेड, बर्गर अउरी पिज्जा पर जोर दियाता जबकि ई बात साफ बा कि एह देस के जलवायु के हिसाब ई ठीक नइखे। ठन्डा जगह पर ई सभ चीज सुपाच्य बाडी सऽ ना कि भारत नियर गरम देस में। एही तरे खेती-बारी के पुरान तरीका के एकदम से बदल दिहल गइल इनार-पोखरा के खतम कऽ के बोरिंग ट्यूबेल पर जोर दियाइल अउरी नतीजा ई भइल पानी नीचे भागत-भागत एतना नीचे भागि गइल कि उँहा से अब खिंचल मुश्किल हो गइल बा। जबकि विगियान ई कहत बा इनार अउरी पोखरा पानी स्तर के बना के राखे में बड़ा सहजोगी बा अउरी सायेद एही कारन पहिले हर गाँव में केतने इनार अउरी पोखरा बनवावल जाओ अ उरी इन्हनी के बनवावला अउरी बचावला के धरम के काम में गिनती होखे। फेड़-रुख ना काटे पर जोर दिहल जाओ।
आज हमनी के ओह मोड़ खड़ा हो गइल बानी जाहाँ ई तय कइल जरूरी बा कि का ठीक बा अ उरी ठीक नइखे अउरी एकरा खाती प्रगतिसीलता के चसमा उतारि के बेवहार के समझ ले आवे के काम बा। जरूरी बा कि फेर से गाँवन में इनार-पोखरा खोनवावल जाओ, चीनी के बदले गुड़ खाइल जाओ, बैल के हर जुआठ बनवा लिहल जाओ, खेत में गोबर डालल जाओ, पाकिट के बदले घर के दूध पियल जाओ, हवादार गरमी सहे लायक घर बनवावल जाओ अउरी एसी के बन कऽ दिहल जाओ। कई दसक लागी ई करे में पर करे के परी नाही तऽ मनु के बाढि में बहे के परी। ई तय हमनी के करे के बा हमनी का चाहत बानी जा। घरे लवटला में केवनो बुराई नाही पुरान के अपनावला में हीनाई ना होला। ई बस समझ-समझ के बात बा।
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अंक - 77 (26 अप्रैल 2016)

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