मास्टर साहेब - ए खदेरन नहीं मानेगा का रे फेर बतिया रहा है किसी दिन दिमगवा खराब हुआ ना त मार के पीठ तुड़ देंगे....रोज बतियाता है खाली, उठो खारा होखो आ बताओ की आज का बतिया रहा है...
खदेरन - मस्सायेब हई छेदिया के बेटवा नु हमरा से बतियावेला मंगरुआ...
मास्टर साहेब - तमीज से बोलो नहीं त मार हुडा के घोघ फुला देंगे...बताओ का बतिया रहा है...
खदेरन - मस्सायेब इ कहता की पूरा दुनिया योग करता आ प्रधानोमंत्री योग करेले रोज सुबेरे-सुबेरे...हमनियो के कइल जाई बिहान से... दूका दूका..
मास्टर साहेब - ए मंगरू तुमको भी ढ़ेर बतियाने का सौख हो गया ह त पढने का आते हो? जाओ योगा माहटर बन जाओ।
ढ़ोंढ़ा - ऐ
बताई ना योगा माहटर बने के पढ़ाई कहाँ से होला, हम बिहाने जाके नाम लिखवा लेम।
मस्सायेब!
लबेदा - (मुस्कीयात)
ढ़ोंढ़वा संगे हमहू जा के नाम लिखा लेहम जोगा आला में।
हं
मस्सायेब
मास्टर साहेब - (मुंह चीढ़ावत) जा के नाम लिखा लेम.....बकलोल कहीं के...ऐकरे को कहल जाता है बाप के नाम सागपात आ बेटा के नाम परोर...बाबू कहियो किये हैं योगा कि तुम योगा करोगे.. आयं।
(तब तक खदेरन खाड़ा हो क कहता )
खदेरन -
रउआ मोबाइल राखिले ?
मस्सायेब
मास्टर साहेब - हं रखते हैं, अभिए न लिए सात हजार में एक रूपया कम का, 5 इंची का स्क्रीन न है...बाकी काहे पुछ रहे हो ?
खदेरन - काहे राउर बाबूजी कब मोबाइल चलवले रहस जे रउवा चलावत बानी ?
मास्टर साहेब -ढ़ेर बहसोगे त मारते-मारते दम छोड़ा देंगे, चले हो हमसे जबान लड़ाने ...बुझते हो कि नहीं।
(तब तक लबेदा खाड़ा होके कहता )
लबेदा - उ कौनो गलत थोड़े कहत बा, रउआ अनेरे खिसियात बानी। पढ़ावे-लिखावे के चाहीं त लइका स से लइका लेखा बहस करत बानी।
मास्टर साहेब - हं हं ठीक है...चलो तुम्ही खाड़ा होखो और बोलो दहेज प्रथा का है ?
लबेदा - उहे नू जवना में तिलक चढ़ेला...फुलहा हण्डा-तसली...छिपा-गिलास मिलेला...हजाम आंख बन्द करेले त सभे दुल्हा पर अछत फेंकेला...कतना लइका जानबुझ के घर के लइकी पर फेक देवेलें स त मारो हो जाला, सभे के भोज खियावल जाला। जादातर तिलक में पइसा आ समान के फरियवता के कारण तिलक लेट से चढ़ेला तबतक हम सुत जानी ऐसे हमरा बेसी पाता नइखे
मस्सायेब
।
मास्टर साहेब - का कहे हम....किसी दिन तुम्हारे बाबूजी से मिलना पड़ेगा।
लबेदा - त ऐमे बाबूजी का क लिहें उहे नू कहेले कि जाके सूत रह हम जातानी नाच देखे, त हम सूत रहेनी...रउआ कहत बानी त अबसे जाग के देखेम कि आउर का-का होला।
मास्टर साहेब - तुम्हारे जइसा दू-चार गो आउर लइका इस स्कूल में हो गया जिस दिन उसी दिन हम नोकरी से रिजाइन मार देंगे....कपार छनछना गया सुन के तुम्हारा जवाब, चलो बइठो.....उठो खदेरन आ बताओ की दहेज के बारे मे का जानते हो...पांच लाइन बोलो।
खदेरन - मस्सायेब, दहेज प्रथा बड़ा खराब दोष ह...कतना दिन से दहेजे के कारण हमरा दीदी के बियाह ठीक ना होत रहे परहे साल हमरा दीदी के बियाह भइल जी आ हमर बाबूजी लडि़का वाला के मांग के हिसाब से 10 कट्ठा खेत बेच के 4 लाख रुपया दे देहलन, खाली फटफटिया ना दियाईल त तिलक लौटत रहे...बड़ा रो-गा के बाबूजी ओह लो के मनाईलें आ बिहान भइला 30 हजार रुपया कजरी के बाबू से सूध पर लियाइल आ दूनू बैल बेच के फटफटिया दियाईल...तब उ बरात लेके अइलें स आ बियाह भइल....माई रोऐले कि बड़ी दिक्कत में बानी स... 1 बीघहा खेत बा चंवर में त दहाईए जाला आ 30 हजार रूपया के सूध बढ़ के 40-45 हजार हो गइल बा...चंवर के खेत बन्हिक ध के सुध भराइल ह, माई इहे सोच में बेमार रहेले आ बाबूजी पईसा कमाए दिल्ली गइल बाडन...गाय बेचाइल बा ओही पइसा से चाउर-दाल किनाला...मस्सायेब एतने पता बा दहेज के बारे में
मास्टर साहेब - (लोर पोछत) अब से तुम्हारा कॉपी किताब का खर्चा हम देंगे...बईठो, मन लगा के पढो...आ बड़ा आमदी बनो। बाकी तुम दहेज मत लेना।
लव कान्त सिंंह
9643004592
अंक - 74 (05 अप्रैल 2016)
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