पिय के आस - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

पिय के आस

कोइली क कुंहूंक परान कुंहूकावे 
ननदी के बोलिया नचिकों न भावे 
तलफेला हिया के मचान सँवरो। 
कहिया बीती पियवा संगे विहान सँवरो। 

तीसिया फुलाइल सरसो के संगवा 
महुवा ढिठाईल पीराला मोर अंगवा 
कामदेव लीहने कमान सँवरो। 
कहिया बीती पियवा संगे विहान सँवरो। 


अमवा क मोजरी मन गमकावे 
फुललका पलसवा हियर बहकावे 
तन मन भइल जवान सँवरो। 
कहिया बीती पियवा संगे विहान सँवरो। 


फगुनी बयार मे देहियों मताइल 
राते सेजरिया न ईचिकों सोहाइल 
घूमे अँखिया मे पिया के निशान सँवरो।
कहिया बीती पियवा संगे विहान सँवरो। 
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कइसन बहल बेयार

कइसन बहल बेयार 
सउसे ओठ झुराइल बा। 
ढहल जाता डडवारी 
मनई ओमे पिसाइल बा॥ 

छूछ भइल अपनन के थाती 
दुबक रहल बा अब उतपाती 
धनियाँ के हेरीं अब कहवाँ 
जोन्ही बदरे सऊनाइल बा॥ 


मान मिलल माटी में 
साँच घेराइल टाटी में 
पिछवारे क सांकल टूटल
तोहमत सीरे घहराइल बा॥ 

परछाहीं के साथ छुटल 
भक्ति भाव के भान घुटल 
टभके लागल देह पीर में 
कइसन बीया अंखुआइल बा॥ 

जमल लमेरा खेते खेत 
करब निराई फेंकब रेत 
पसरे नाही देबे एकरा 
कूल्हे रँग चिनहाइल बा॥ 

हमरे थरिया मे खात रहल 
भर जिनगी के साथ रहल 
न जानी कवना कोल्हू में 
बझल आउर अंइठाइल बा॥ 
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लेखक परिचय:-

मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 73 (29 मार्च 2016)

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