मनोरंजन प्रसाद सिंह जी के ए कबिता में गाँवन के जिनगी से जुड़ल कुछ अइसन बातन भा कही परम्परा औरी संस्कारनऽ कऽ चरचा भइल बा जेवन आज के अन्हुआइल दौड़ में फंसल अदिमी के जिनगी से बहरिया गइल बा। आज लइका बाचा ना तऽ कौआमामा औरी चील्हिआ-चिल्होर खेलता नाही परेम में पहिलका लुक्का छीप्पि रहि गइल बा। आज रहि गइल बा तऽ चारु ओर हुल्ला-हपाड़ा। साहित्य ना खाली अदिमी के मन औरी जिनगी के बात करेला बलुक समाज, इतिहास औरी संस्कार कऽ कहानीयो कहेला।
---------------------------------------------------------
अबहूँ कुहुकिएके बोले ले कोइलिया, नाचेला मगन होके मोर।
अबहुँ चमेली बेली फूले अधिरतिआ, हियरा में उठेला हिलोर।।
अबहूँ अँगनवाँ में खेलेला बलकवा, कौआमामा चील्हिआ-चिल्होर।
अबहूँ चमकिएके चलेले तिरिअवा ताकेले भुँइअवे के ओर।।
चोरी-चोरी अबो गोरी करेली कुलेलवा, चोरी-चोरी आवे चितचोर।
भूलि जाला सुधबुध कामकाज लोक-लाज, करेले जवानी जब जोर।।
छुनिया के रंग ढंग सब कुछ ऊहे बाटे, ओइसने बा जोर अउरी सोर।
कुछओ ना बदलल, हमहीं बदल गइलीं बदलल तोर अउरी मोर।।
तबके जवान अब भइले पुरनिआ, देहिआ भइल कमजोर।
याद जब आवेला पुरनका जमनवा, मानवा में होखेला ममोर।।
कुछ दिल अउरी धीरज धरु मनवा, जिनगी के दिन बाटे थोर।
पाकल पाकल केसिआ में लागेना करिखवा, रामजी से करु ई निहोर।।
-----------------------मनोरंजन प्रसाद सिंह
------------------------------------------------------------------------------
<<<पिछिला अगिला>>>
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें