चइता कहीं भा चइतावर - अशोक कुशवाहा


चइत के महिना हमनी भोजपुरिया सामाज के साल के पहिलका महिना मानल गइल बा अउरी चइत महिना में गावे वाला चइता/चइतावर भोजपुरिया सामज में कुछ ख़ास महातम राखेला। चइत महिना में गावला के कारण ही ई लोक गायन के नाम चइता भा चइतावर नामाकरण कइल गइल बा। चइत महिना के शुरू होखे से ले के रामनवमी तक अउरी कहीं-कहीं पूर्णमासी तक चइता गावल जाला। चइता के गायन में रामायण के अलगा-अलगा प्रसंग के ले के गावल जाला। चइता में मानव-जीवन के अनुराग के चित्रण अउरी परेम के परदरसन सुने के मिलेला। चइता में मौसम के रंग अउरी प्राकृतिक के प्रसंग के बर्णन बहुते बढ़िया से सुनेके मिलेला। 

भोजपुरी समाज में समय के गति के साथे-साथे लोग के फुर्सत आ आनंद लेवे के तरीका में आइल बदलाव भोजपुरी लोकगीतन के समुन्दर बना देहले बा। भोजपुरी संस्कृति में गीतन के ई अनोखा धरोहर में समय स्वतन्त्रता आ समय से बान्हल दुनु तरह के गीतन के रचना कइल गइल बा। समय स्वतन्त्र रहल गीतन में भजनकीर्तन, झूमर सहित के कुछ गीतन के लेहल जाला बाकी समूचा गीत खास समय, खास महिना, खास रितु, खास उत्सव, खास अनुष्ठान चाहे कौनो खास आवसर पर ही गावे के प्रचलन बा। चइता चाहे कहीं चइतावर समय से बान्हल मौसमी गीत ह। 
समय से बान्हल गीतन के कुसमय पर ना गावे के हिदायत भी देहेल गइल बा। एक मौसम के गीत दोसर मौसम में अकरावन लागेला। भोजपुरी जनश्रुति के मान्यता बा की अइसन समय से बान्हल मौसमी गीत कुसमय गावला पर अनिष्ट होखे के आशंका होखेला। जनश्रुति के लोकगाथा के अनुसार सावन के महिना में एगो गाय कही एगो ईनार में गिर गइल रहे। सावन भादों बरसात के महिना होखेला एही से गाय के आशा रहे की दू चार दिन में बारखा बरस बे करी अउरी ईनार में पानी भरबे करी धीरे धीरे पानी के सतह ऊपर उठी अउरी हम ईनार से बाहर निकल जाएम। एतने में कोई जन सावन के महिना में चइतावर गा देहले। चइतावर के धुन सुनि के गाय के हिम्मत टूट गइल काहे की चइत से सावन आवे में चार महिना लागेला अउरी गाय हादास से मर गइल। ओही से कहल गइल बा 
"सांझ पराती भोर के सांझा, लात खाए के इहे धंधा" 
अर्थात साँझ के पराती आ भोर में साँझा ना गावे के चाहि। 
कबो समय रहे की गाँव में रात-रात भर चइता के धुन सुनाई देवे 
"आ गइल हो देख चइत महिनवा, 
महुवा बिने हम जईब हो रामा, 
आमवा के लागेला टिकोरवा, 

आ गइल हो देख चइत महिनवा" 

चइत महिना के शुरू होते चइता के गायन भी शुरू होला। गाँव-देहात में चइत महिना नाय साल के साथे-साथे गर्मी के शुरुवात होखेला गर्मी में सभ कोई गाँव के चौक-चौराहा पर बुढूवा पुरनिया लोग रात-रात भर चइता गा के बितावत रहे लोग अब उ समय ना रह गइल। अब त हमनी के भोजपुरिया संस्कृति धीरे-धीरे भुलात जाता अउरी चइता त अब बस इन्टरनेट, कौनो भोजपुरी सांस्कृतिक कार्यक्रम या रेडियो पर ही सुने के मिलेला। 

चइता गीत के मूल रूप से दू गो लय होखेला। आई कुछ चइता के बोल देखल जाव:-

‘बितले फगुनवा आहो चइता आएल हो चइता आएल हो रामा 

देश गेल बलमुआ सेहो नहीं आवले हो रामा देश गेल बलमुआ 

चइत मासे चुनरी रङाइद बलमु हो जइबो नइहरवा 

चुनरी रङाइद चोलिया सिआइदऽ 

अँचरा में घुँघुर लगाइदऽ बलमु हो जइबो नइहरवा। चइत मासे॥

पहिले सुमिरो सुरसती मतवा हे रामा, एही ठईया। 

आजू चइता हम गाईब हे रामा, एही ठईया॥’

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लेखक परिचय:-

नाम : अशोक कुशवाहा
पता : गा.बि. स. भिस्वा - ३ पर्सा (नेपाल )
भोजपुरी अध्यन तथा अनुसंधान केन्द्र पर्सा जिल्ला के सह-संयोजक 
दूरभाष नम्बर : +९७७ ९८४५३०५२६४


अंक - 76 (19 अप्रैल 2016)

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