अवघड़ अउर एगो रात - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

रहल होई १९८६-१९८७ के साल, जब हमारा के एगो अइसन घटना से दु–चार होखे के परल, जवना के बारे बतावल चाहे सुनवला भर से कूल्हि रोयाँ भर भरा उठेला। मन अउर दिमाग दुनों अचकचा जाला। आँखी के समने सलीमा के रील मातिन कुल्हि चीजु घुम जाला। इहों बुझे मे कि सांचहुं अइसन कुछो भइल रहे, कि खाली एगो कवनों सपना भर रहे। दिमाग पर ज़ोर डाले के परेला। लेकिन उ घटना खाली सपने रहत नु त आजु ले हमरा के ना किरोदत। 
हमरा घर से चार–पाँच घर छोड़ के एगो हमरे गोतिया बंसी के घर बा। ओ घटना से असली संबंघ त बंसी के ही बा। हर गाँवन मे चिकारी करे वाले लोगन के फौज होले, हमनियों के इहवाँ बा। कुछ लोग उनकरा के रिगावते रहस, काहे ला कि उनका कवानों संतान ना रहुए। बंशी संतान खाति पूजा फरा अउर झाड फूक बहुत करस अउर करावस। कबों कबों ओझा सोखा के भी बोलावस, अउर अपना घर मे हवन पूजन भी करावस। झूठ जाने साँच उनका मन मे ई बात रहे कि कवनों ऊपरी चपरी के चक्कर उनका घरे पर बा। जवन कि उनका बंश बढला से रोकत बाटे, चाहे ई ना चाहत होखे कि उनका घर मे कवनों संतान होखे। 
जेठ के महीना रहल होई, जब कुल्हि स्कूल बंद हो जालन स। किसानो लो अपना फ़सली कामन से फारिग रहेला। गांवन मे गर्मिए मे शादी वियाहो ढेर होला। कुल मिलाके फुरसते फुरसत रहेला। बंशी ओहि लगले एगो अवघड तांत्रिक के अपना घरे बोलवलन लेकिन जब उ तांत्रिक उनका दुआर के निगचा के कहलस कि दिन मे हम राउर घर मे ना जा सकीला, ई काम हमरा के रात मे करे के परी। रात के हम तहार घर मंतर से बान्हब, फेरु घर मे प्रवेश करब। तबे कवनों उताजोग हो सकेला। 
बंशी के घरे के नीयरे एगो हमरे अउर गोतिया के घर बा, जेकरा के हमनी सभे चाचा बोलीले। उनका घरे पर अवघड के रुके क इंतिज़ाम कइल गइल। फिर त चाचा के घरे ओह अवघड बाबा से मिले खाति गाँव भर से लोग जुटे लागल। घंटा दू घंटा तक उ बाबा गाँव के लोगन बात सुनलस अउर कुछ लोगन के समाधान बतवलस, फिर अपना पुजा मे बईठ गइल। तनी चुकी देर मे संउसी भीड़ छट गइल। सभ केहु अपना अपना घरे चल गइल। चाचा से उ अवघड़ आपन घनिष्ठता बना लीहलस। चाचा जवन हाईस्कूल मे पढ़ावत रहनी, से उहो चाचा के मास्टर कह के बोलावस। कुल जमा ई मानल जा सकत बा कि उ सभके अपना भरम जाल मे फँसा लीहलस। चाचो उनका बाबा कह के बोलावस। चाचा फेरु हमरा के बोलवलन अउर ओह अवघड बाबा से हमरो परिचय करा देहलन। 
धीरे-धीरे शाम हो गइल। हमरो के रात मे चाचा के घरे रुके के पड़ गइल। रात सब केहु भोजन क के सो गइल। रात के मजगला के बाद अवघड़ बाबा के करतब चालू भइल। अचके मे हमार नीद खुलल अउर हम अवघड़ बाबा के संगे सड़क पर पवनी। बाबा अपना भारी भरकम आबाज मे आदेश सुनवलन, चुपचाप संगे चलत रह बचवा। बाबा आगे आगे अउर हम उनका पीछे पीछे चल देहनी। हमरा गाँव के नजदीके मे जंगल बा। बाबा जंगल के ओरी बढ़े लगलन। अउर हमार डरो धीरे धीरे बढ़े लागल। बाबा के न जाने कइसे ई बुझा गइल, फेरु उ हमरा के ढांढस ई कह के बंधवलन “डेरो मत बचवा, बस चुपचाप चलत रह।" जंगल के रस्ते मे एगो भैरव मंदिर बाटे, बाबा ओनी सिर झुकावत आगा बढ़ने अउर हम उनका पीछे जंगल मे हेल गइनी। जंगल मे करीब 50 कदम अंदर गइला के बाद बाबा फेरु हमरा से कहलन “बचवा तू इहवें खड़ा रह। हम ओनिए खाड़ हो गइनी। बाबा एगो झाड़ के नगीचे चहुंप के आपन एगो गोड जमीन पर पटकलस, फेरु त अइसन कुछ भइल कि हम खड़े खड़े काँपे लगनी। एगो मुरदा कफन मे लिपटल जमीन के ऊपर आ गइल। बाबा ओहि पर बइठ के थोड़ी देर कवनों मंतर के जाप कइलस। फेर ओकर कफन हटा के मास खाये लगलन। हमरा डर के मारे पूरा शरीर कांपत रहे, बाकी उहवाँ चुप खड़ा रहले के अलावा हमरा लगे कवनों दोसर उपाय ना रहे। आपन भोजन पूरा कइला के बाद, बाबा खाड़ दोबारा से आपन गोड़ जमीन पर पटकलन, त उ मुरदा गाइब हो गइल। फेरु हमरा के लौटे के कहलन , पलक झपके भर के देरी मे हम फेरु ओहि सड़क पर आ गइनी जहवाँ हमार नीद खुलला के बाद अपना के पावले रहीं। फेरु कब अउर कइसे हम अउर उ बाबा आपन आपन बिस्तर पर पहुच गइनी जा ई आजू ले हमरा के ना बुझाइल। लेकिन छत पर जहवाँ हमनी के सुतल रहनी जा, चाचा कपारे हाथ ध के बइठल रहने। शायद उनकरो नींद खुल गइल रहे अउर उहवाँ हमरा अउर बाबा के गायब देख के घबरा गइल रहें। घर के कूल्ही दरवाजा खिड़की देख चुकल रहें, कूल्ही उनका के बंदे मिलल रहे। फेरु बाबा चाचा से बोलने, “काहों मास्टर काहें बइठल बाड़ा?” चाचा घबरा गइने, आ हमरा ओरी देखत कहने, ना बाबा हम ठीक बानी। 
अब तू सभे सो जा लो, हमरा के काम करे के बा, ई क़हत बाबा जमीन पर लेट गइलन, फिर हमनियों के बिस्तर पर लेट गइनी जा। नींद हमनी के कब अपना कब्जा मे ले लीहलस, ई ना बुझाइल। हमनी के सुतला के बाद अवघड़ बाबा बंशी के घरे जा के आपन तांत्रिक क्रिया कलाप कइले कि ना, हमनी के ना पता चलल। भोरे सबका जगला के बाद अवघड़ बाबा हमनी से कहने कि राती के उ आपन सारा काम कर देले बाड़ें। एकरा संगही उ इहों बता दीहने कि बंशी के घरे संतान ना हो सकेले। साँचो आजुओ ले बंशी के संतान सुख ना हो सकल बा। जब कबो हमरा ई घटना मन पर जाला, हमार रोआँ-रोआँ काँप उठेला अउर अवघड़ बाबा के चेहरा आँखी मे चौंध जाला। 
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लेखक परिचय:-

नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी 
मैनेजिग एडिटर (वेव) भोजपुरी पंचायत
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र: 
सी-39 ,सेक्टर – 3 
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.) 
फोन : 9999614657
अंक - 68 (23 फरवरी 2016)

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