जन भा मजदुर - प्रिंस रितुराज दुबे

ढो ढो के बोझा कान्ह बथल
हाथे का आईल ये भईया
बड़का बड़का के सपना सजइनी
ना लागल हाथे ठीक से खाहु क रुपईया

कारज करत जब हार जाई
भेली आ पानी से थकन मेटाई
हमके जन भा मजदुर कहल जाला
एही से हमसे छुआ छूत क भेद होला

बिहाने बिहाने रोजे जागी
उगत सुरुज दईब क गोण लागी
कपार से पसेना चुअत जाला
तबो ना हम आपन गोण रोकी

बिपत परे चाहे होखे बरखा
कार ना छोड़ी हम घामा में
खाली गोण दउरत चली
फोका निकले काट गड़े

निति भईल इंडिया के ख़राब
जाने दोसरा से कब लिलो सिख
जनावे खातिर मई दिवस मनावल जाता
मजूरी देबे घरी तोल मोल कईल जाला

चलल जाव अब अबेर होता
बच्च्वन होईये भुखाईल घरे
माई बाउजी के जोहत जोहत
सूत गईले बिना खईले

जिनगी बा अनमोल सबके
सब के मिले दुःख के आगे सूख
हमनी के करम बा फूटल
दुःख के आगे अवुरी मिले दुःख

जाने कब दईब मेहरबान होईहे
बच्चन कब जईहे ईस्कुले
पढ़ लिख के करम बनइहे
जिनगी कब होई खुशाल

अजब जिनगी के समय बा भईया
ना मिले दाना ना लुगा
दोसरा के हम जिनगी सजाई
अपने देह पS रहे फाटल कुरता आ लुगा

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लेखक परिचय:- 
अंडाल, दूर्गापुर, पश्चिम बंगाल 
ई-मेल:- princerituraj@live.com
मो:- 9851605808
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