गाँव क बरखा - चंद्रशेखर मिश्र

हमरे गाँव क बरखा लागै बड़ी सुहावन रे॥

सावन-भादौ दूनौ भैया राम-लखन की नाईं,
पतवन पर जेठरु फुलवन पर लहुरु कै परछाईं।
बनै बयार कदाँर कान्ह पर बाहर के खड़खड़िया,
बिजुरी सीता दुलही, बदरी गावै गावन रे॥

बड़ी लजाधुर बिरई अंगुरी छुवले सकुचि उठेली,
ओहू लकोअॅरी कोहड़ा क बतिया, देखतै मुरझेली।
बहल बयरिया उड़ै चुनरिया फलकै लागै गगरिया,
नियरे रहै पनिघरा, लगै रोज नहावन रे॥

मकई जब रेसमी केस में मोती लर लटकावै,
तब सुगना रसिया धीर से घुँघट आय हटावै।
फूट जरतुहा बड़ा तिरेसिहा लखैत बिहरै छतिया,
प्रेमी बड़ी मोरिनियाँ लागै मोर नचावन रे॥
----------------------------------
चंद्रशेखर मिश्र - मैना
चंद्रशेखर मिश्र 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.