सुखल जाता धरती के पानी ए राजा जी
क इसे चली आगे जिनगानी ए राजा जी।
घर वा दुआर छोड़ि के जाल परदेसवा
क इसे बाँची टुटही पलानी ए राजा जी।
अन्हिया बहल उड़ियात बा टे गँउवा
जिनगी भ इल कोल्हू घानी ए राजा जी।
केकरा दो घर वा में सोनवा सुखात बा
केहू के कटेला खूबे चानी ए राजा जी।
हवा में बनावेल तू कहँवा क इसन किलावा
चुनरी धूमिल इहँवा धानी ए राजा जी।
लूगावा लटाला हमर रोजे सरेआम हो
कहेल तू नानी के कहानी ए राजा जी।
कांटक एह धरती के बाँची पानी क इसे
रानी मस्तानी मधुरी बानी ए राजा जी।
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क इसे चली आगे जिनगानी ए राजा जी।
घर वा दुआर छोड़ि के जाल परदेसवा
क इसे बाँची टुटही पलानी ए राजा जी।
अन्हिया बहल उड़ियात बा टे गँउवा
जिनगी भ इल कोल्हू घानी ए राजा जी।
केकरा दो घर वा में सोनवा सुखात बा
केहू के कटेला खूबे चानी ए राजा जी।
हवा में बनावेल तू कहँवा क इसन किलावा
चुनरी धूमिल इहँवा धानी ए राजा जी।
लूगावा लटाला हमर रोजे सरेआम हो
कहेल तू नानी के कहानी ए राजा जी।
कांटक एह धरती के बाँची पानी क इसे
रानी मस्तानी मधुरी बानी ए राजा जी।
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