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“कैथी”
की उत्पत्ति 'कायस्थ' शब्द से भईल जवन कि उत्तर भारत क एक सामाजिक समूह ह। इ लिपि के उपयोग सबसे
पाहिले व्यपार सम्बंधित आकड़ा के समाल्ह के रखे खातिर कईल गईल रहे। कायस्थ समुदाय के
पुरान रजवाड़ोन आ ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकोन से काफी नजदीक वाला नाता रहे। इ उनकर
इहाँ विभिन्न प्रकार के आँकड़ोन क प्रबंधन आ भंडारण करे के खातिर नियुक्त कईल जात
रहे लोग। कायथन द्वारा प्रयुक्त इ लिपि के बाद में कैथी के नाव से जानल जाये लागल।
कईथी एगो पुरान लिपि ह
जेकर प्रयोग कम से कम 16 वी सदी मे धड़ल्ले से होत रहे। मुगल सल्तनत के दउरान एकर
प्रयोग बहुत व्यापक रहे। 1880 के दशक में ब्रिटिश राज के दउरान एकर पुरान बिहार के
न्यायलयन में आधिकारिक भासा के दर्जा दिहल
गईल रहे ।एकरा के खगड़िया जिले के
न्यायालय में वैधानिक लिपि क दर्ज़ा दिहल गईल रहे। आजहू बिहार समेत देश के उत्तर पूर्वी राज्यन में इ लिपि में लिखल हजारन अभिलेख
बा। समस्या तब होला जब इ अभिलेखन से संबंधित कानूनी अडचन आवेला।
दैनिक जागरण के पटना संस्करण में नउ सितंबर 2009 के पेज
बीस पर बक्सर से छपल कंचन किशोर क
एगो खबर के संदर्भ लिहल जाव त इ लिपि के
जानकार अब उ जिले में खाली दुगो लोग बचल बाड़े। दुनो लोग बहुत उमिर वाला बाड़े। एसे में निकट भविष्य में इ लिपि के जाने वाला शायद केहू ना बाच पाई अऊर
तब इ लिपि में लिखल भू-अभिलेखन के अनुवाद आज के प्रचलित लिपियन में कईल केतना
मुस्किल होई एकर सहज अंदाजा लगावाल जा सकेला। अईसे में जरूरत बा इ लिपि क संरक्षण के। सबसे पाहिले जरुरी इ
बा की खास करके झारखण्ड,यूपी,बिहार के
लोगन क इ लिपि के लेके जागे के पडी .जईसे बंगला, पंजाबी, गुजराती, चाहे दखिन भारत के द्रविड़ लिपि अलग अलग बा, उहीतरे भोजपुरी या अर्ध भोजपुरी भाखा लिखे खातिर कैथी लिपि क उपयोग करे होई। अफ़सोस के बात इ बा
की एतना बड़ संख्या में भोजपुरी भासा भासी
क्षेत्र के भारत के अचछा राजनिति पद पर रहे लो बाकिर एकरा बावजूदो
भोजपुरी(कैथी) क ओकर सम्मान ना मिल पावल।
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लेखक परिचय:-
नाम - प्रिंस रितुराज दुबे
अंडाल, दूर्गापुर, पश्चिम बंगाल
ई-मेल:- princerituraj@live.com
मो:- 9851605808
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