
बात के तह में - दिनेश पाण्डेय
अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा। परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सम्बभूव।। १ (हमीं हवा का तरे बहीले बिस्व भुवन के अँकवारी ल...
अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा भुवनानि विश्वा। परो दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिना सम्बभूव।। १ (हमीं हवा का तरे बहीले बिस्व भुवन के अँकवारी ल...
फगुआ के अनवाध में, चइत दुआरे ठाढ़। ललकी किरिन परात के, तकलसि घूघा काढ़। मादक महुआ गंध में, डूबल बनी समूल। हवा कटखनी बिन रहल, मउनी भरि-भरि फू...
अवतार के साँच ‘अवतार’ शब्द के प्राचीन प्रयोग यजुर्वेद में प्राप्त बा- “ उप ज्मन्नुप वेतसेऽवतर नदीष्वा। अग्ने पित्तमपामसि मण्डुकि ताभिरागहि स...
श्रीमद्भागवत पुराण के दसवाँ स्कंध के ४६-४७ वें अध्याय में कृष्ण के उद्धव के जरिए गोकुल में सनेसा भेजे के प्रसंग बा। एह घटना के विस्तार दू तर...
आजकल दिन बेरुखा बा धूप बोझिल अनमनी। साँस के आवारगी में चिंतना के रहजनी। पेड़ के छाँही सकोचल धूँध अइसन बढ़ रहल। आँखि के पुतरी प चिनगी ओठ पर ब...
सुबहाँ कहीं तान से कंगन के धुन फेरू कुनमुन। लरज गइल ह डार सोहरि के भुँइयाँ तक ले, हरसिंगार के। धीम बयारि, सींक ना डोले। झिंगुर कि छागल बाजत ...
ए बनचीरी, ए बनचीरी! कवन दिसा से अइलू पुतरी? कवन घिरनियाँ, कथि के सुतरी? कवन रचावल मंच अनोखा, कवन लिखल अनबुझ तहरीरी? ए बनचीरी...
सोझ हराई में साजिश के बुनत रहल बिखबेली जे, काहे दुन कुछ दिन ले भइया, बाँट रहल गुर भेली से। ढलल बयस तबहूँ ना जानसि अंतर मुरई ग...
अनबूझे रहल राधा, जमुना कगरी के ऊ मिलन पहिलकी, पैबस्त बा ओसहीं अजुओ ले जेहन में चनन खौरी, रेख रोरी, दमकत मुख अउ शोख मिरिगा आँख...
ननदी ई गोसा काढ़े, झाँझरिया झमकावे, काकुल के लहरा प लोटऽथई सरपिन। टहकार टिकुला प ढिठई के पन्नी साटी, बेहयो के बेहयाई ...
सुगइया रंग सारी, नदी रूपली किनारी, भुईं गरबिला मुँह आब छितरा रहल। गाभा भर धान पौध, पात-पात चकाचौंध, मोतियन लड़ी पेन्ह ...
बड़ी रे रकटना से गढ़ल महादे' गोईं, बइठे देवल चढ़ि धइके गहिर ध्यान। पान-फूल अछतो प पलक न खोले बौरा, आरजू मिन्नत कइ ...
बस अबकी बेरी अजमाईं। झाड़ू फेरबि गावाँ-गाईं। झकझक होखी खोरी-कूचा। अब ना रहिहें गुब्ची-गुब्चा। जहवाँ चाहीं टाट बिछाईं। बोलीं केकर...
मेहधुईं पीठ पर भरल, चँगुरा में गाँव-घर धरल, या कि नीन में भरल गरूड़ अस सुत रहल पहाड़ झुरमुटन तरे। नदी के धार में असंख आसमाँ तरे...
मेहधुईं पीठ पर भरल, चँगुरा में गाँव-घर धरल, या कि नीन में भरल गरूड़ अस सुत रहल पहाड़ झुरमुटन तरे। नदी के धार में असंख आसमाँ तरे...