कुकुर बझाव - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

कुकुर बझाव
जान बूझ के अझुराइल
साँच झूठ के गरही लाँघत
जब जुरत रहे ना कुछो
तब ले फेंकरत फेंकरत
अपने करम के लुकववले
सभके समने पसर फइला के
मंगनी माँगत – खात
संगही सँपोला पलले
अजुवो ले अनचीन्ह काहें?

कइसन सुनगुन भइल
मयगरो मुँह फेर लीहलें
बखारो दीहल रोक दीहलें
हुड़कत छछनत उनुके दुअरा
उघारे गोड़ हमरा देखते
महटियवलें, गुरमुसइलें
फेरु खेद दीहलें काहें?

बिछिली में चिल्हिक गइल ठेहुना
चलल फिरल दुसवार
उठल बइठल, हिलत डुलत आफत
चिकनगुनिया लेखा पोरे पोर पिरात
झंखही के बा अब
आपन लेसल लुत्ती
अपने मड़ई में लाग गइल
गोतिया बाँह चढवले
मोछी पर ताव देत
लठइत लेखा भाँजत
ठठा के हंसबे करिहें

का करीं
कुछ्हू बुझाते नइखे
लागल आगि में पानी डारी
डोजर बोलाई
छरिका से बहारीं
भा कुछो आउर?
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लेखक परिचय:-

नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र:
सी-39 ,सेक्टर – 3
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.)
फोन : 9999614657
अंक - 110 (13 दिसम्बर 2016)

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