कइसे काम चलइहें मालिक - जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

घरे - दुआरे सगरों शोर
बनवा नाहीं नाचल मोर
कइसे काम चलइहें मालिक॥

हेरत हेरत हारल आँख
केकर कहवाँ टूटल पांख
सात पुहुत के बनल बेवस्था
अब कइसे बतइहें मालिक
कइसे काम चलइहें मालिक॥

बिन हरबा हथियार चलवले
कूल्हि जनता के मने भवलें
गाँव शहर के महल अटारी
कूल्हि खोल देखइहें मालिक
कइसे काम चलइहें मालिक॥

नया नवेला बीरवा जामल
रोज सबेरे लाइन लागल
भरल तिजोरी कागज लेखा
खुदही आग लगइहें मालिक॥ 
कइसे काम चलइहें मालिक ॥

अकुताही मे भभकल दियरी
छुटल उनुका उबटन पियरी
गाँठ भइल बेकार अचानक
केकरा से बतइहें मालिक
कइसे काम चलइहें मालिक॥ 
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लेखक परिचय:-

नाम: जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
बेवसाय: इंजीनियरिंग स्नातक कम्पुटर व्यापार मे सेवा
संपर्क सूत्र:
सी-39 ,सेक्टर – 3
चिरंजीव विहार, गाजियावाद (उ. प्र.)  
फोन : 9999614657

अंक - 109 (06 दिसम्बर 2016) 

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