कुक्कुर के कहानी -6 - धरीक्षण मिश्र

अध्याय - 6

सन बावन से सन तिरसठ तक जब जहाँ जरूरत पड़ल हवे।
कुक्कुर हमार ई तब तहवाँ घोघिया घोघिया के लड़ल हवे॥1॥

लेकिन सन चौसठि में एकर मन लड़त लड़त अगुताइ गइल।
आ दुशमन दल का कुकुरन में मिलि जाए के ललचाइ गइल॥2॥

दुशमन दल का कुक्कुर के जब एकरा अनुकूल विचार मिलल।
तब त दूनूँ दल का मानों बूड़त का एक अधार मिलल॥3॥

ओह दल के कुकुरा कहले सन अब भोंकल व्यर्थ निवार तूँ।
बारह बरीस तक भोंकि भोंकि का पवलS तनिक विचार तूँ॥4॥

सगरे ऊँखी का खेतन के करिह अब से रखवारी तूँ।
हमनी का जवन कहबि ओहि में अब भरिह सदा हुँकारी तूँ॥5॥

अब उँखिये में चरिह चुरिह अब धरिह मनमाना शिकार।
खेखर खरहा खइह लेकिन जब देखिह तूँ मोटका सियार॥6॥

तब भले जोर से गुरनइह बाकी दूरे से डेरवइह।
ई हउअन सन पोसुवा सियार एकनी का पँजरा जनि जइह॥7॥

ई ऊँखी के रस चूसि चूसि अपने पेटवा बस भारेले।
केतना मेहनत कइलस किसान एपर ना तनिक विचारेले॥8॥

एह सियरन के बस इहे बानि सब दिन से हवे निमहि गइल।
का राज तंत्र का प्रजातंत्र दूनूँ धिरावते रहि गइल॥9।।

केहुवे का कहला सुनला से जनि एकनी पर परि जइह तूँ।
बतिया हमार ल गाँठि बाँन्हि युग युग ले जीहS खइहS तूँ॥10॥

पहिले के आदत छोड़S तूँ अब से हमनी का साथ रहS।
हमनी का तरे आजुवे से तूँ छुटहे खेलत खात रह॥11॥

ई हे बतिया सुनते एकर सब बुद्धि पुरनकी खोइ गइल।
आ बड़का दल का कुकुरन से तब सुघाँ सुघौंवलि होई गइल॥12॥

बारह बरीस जवना कुक्कुर के कहलसि चोर लबार सजी।
ओही कुकुरन का साथे ई अब लूटे चलल बहार सजी॥13॥

मन आग पाछ में बा शायद ना कहीं ठीक से पाटत बा।
जनता में जात लजात हवे दिन एने ओने काटत बा॥14॥

शंका ई हे केतने साथी लोगन का मन में धइले बा।
पहरा जो मिलल ऊँखि के ना तब मानीं कि घर गइले बा॥15॥

केहु कहत हवे कब तक लड़ो ई लड़त-2 अब थाकल बा।
हाड़े माँसे के देहि हवे एही से मनवों पाकल बा॥16॥

केहु झंखत बा, अपने खातिर ई सब जे बाटे से बाटे।
हमनी गरीब के पुछवइया लउकत नइखे कि के बाटे॥17॥

शासक कुकुरन का श्रेणी में दोसर शरीर अब धइले बा।
काहें कि ओह जनम में ई कुछ ज्यादे पुन्नि कमइले बा॥18॥

देखीं, पा के अब नया जन्म उजियावेला कि बोरेला।
घर के पहरा देला आ की हँड़िया गगरी टकटोरेला॥19॥

काहें कुक्कुर दूबर भइलें, आवा जाई दू घर कइलें।
बड़का सावज उनका महकल, दूनूँ घर के कवरा बहकल॥20॥
-----------------------------------------
धरीक्षण मिश्र


 








अंक - 107 (22 नवम्बर 2016)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

मैना: भोजपुरी साहित्य क उड़ान (Maina Bhojpuri Magazine) Designed by Templateism.com Copyright © 2014

मैना: भोजपुरी लोकसाहित्य Copyright © 2014. Bim के थीम चित्र. Blogger द्वारा संचालित.