बहुत शुबहा कइल - राजीव उपाध्याय

बहुत शुबहा कइल
बोलल बहुत उरेब सभ से
कुछ सवाल पूछि ली अब
मन! रूकि के अपना से
कि काँहे छूटल जाता
सभ लोग तोहरा से।

एतना बोझा मत ढोव मन!
भहरा के गिर जइब
कि केहू उठाई पुचकारी
लागी सभ ढिठाई
अउरी बन महतारी उहे बोझा
काटी तोहके तोहरे से।

हो सके त छोड
झूले द मझदार में
सभ पुलई पर ना चढे ला
कुछ रहेला बिसतार में
जान ल एहि तरे जूटे ला
हितई सभकर सभका से।

जेतना खे सके ल खेव
बाकि छोड उनका पर
पार लागी जे लागे के होई
केहू आई हरकार में
बस रहे द बहुत भइल
जागे द उनको के सुसकार से।
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लेखक परिचय:- 

नाम: राजीव उपाध्याय
पता: बाराबाँध, बलिया, उत्तर प्रदेश
लेखन: साहित्य (कविता व कहानी) एवं अर्थशास्त्र
संपर्कसूत्र: rajeevupadhyay@live.in
दूरभाष संख्या: 7503628659
ब्लाग: http://www.swayamshunya.in/
फेसबुक: https://www.facebook.com/rajeevpens

अंक - 107 (22 नवम्बर 2016)

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