कब लगि सहबे अगिनियाँ के धाहवा, ए सोहागिनि!
लछ चौरासी कर धार॥
नइया रे डुबेला ना त अगम अथहवा, ए सोहागिनि!
कहिले से कर ना बिचार॥
सतगुरु ज्ञान के केवट मलहवा, ए सोहागिनि!
संत कर शब्द करुआर॥
आपन प्रीतम बसेला सखी जॅहवाँ, ए सोहागिनि!
सहजे में उतरि लेहु पार॥
लछिमी सखी गावे निर्गुनवाँ, ए सोहागिनि!
ना त टुटेला सोऽहं तार॥
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लछ चौरासी कर धार॥
नइया रे डुबेला ना त अगम अथहवा, ए सोहागिनि!
कहिले से कर ना बिचार॥
सतगुरु ज्ञान के केवट मलहवा, ए सोहागिनि!
संत कर शब्द करुआर॥
आपन प्रीतम बसेला सखी जॅहवाँ, ए सोहागिनि!
सहजे में उतरि लेहु पार॥
लछिमी सखी गावे निर्गुनवाँ, ए सोहागिनि!
ना त टुटेला सोऽहं तार॥
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लेखक परिचय:-
नाम: लछमी सखी
काल: 1841-1914
जनम: अमनौर, सारन, बिहार
सखी सम्प्रदाय के संत
अंक - 103 (25 अक्तूबर 2016) काल: 1841-1914
जनम: अमनौर, सारन, बिहार
सखी सम्प्रदाय के संत
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